सोमवार, अगस्त 30, 2010

तू जला डाल कुछ कैलोरी

तू जला डाल कुछ कैलोरी

मत बैठ हाथ पर धरे हाथ
बातें न बना केवल कोरी
तू जला डाल कुछ कैलोरी

काया अपनी गौर से देख
है मोटू इसमें छिपा एक
मत सुला इसे गाकर लोरी
तू जला डाल कुछ कैलोरी

तू डर न परिश्रम से बिल्कुल
काँटों में ही खिलते हैं गुल
कर शुरू अभी मेहनत थोड़ी
तू जला डाल कुछ कैलोरी

ले सीख पुन: पैदल चलना
दे छोड़ स्वयं को ही छलना
कितनी कसमें खाकर तोड़ीं
तू जला डाल कुछ कैलोरी

साइकिल को ठीक करा फिर से
बाइक का भूत उड़ा सिर से
सब छोड़ कार हो या घोड़ी
तू जला डाल कुछ कैलोरी

इससे पहले कि लगे ठोकर
घुटने ये रह जाएं रोकर
बढ़ जाएं वजन व कमजोरी
तू जला डाल कुछ कैलोरी

घर में रख ले डम्बल लाकर
या जिम जाकर कुछ कसरत कर
यूँ पकड़ न आलस की डोरी
तू जला डाल कुछ कैलोरी

जब तू हो जाएगा मोटा
कर देगी खाने का टोटा
पत्नी काली हो या गोरी
तू जला डाल कुछ कैलोरी

वर्जित होगा मीठा खाना
तुझको गुड़ भी होगा पाना
अपने ही घर करके चोरी
तू जला डाल कुछ कैलोरी

मोटापे के हैं रोग बहुत
क्यों बना हुआ बैठा है बुत
जैसे शर्मीली सी छोरी
तू जला डाल कुछ कैलोरी

मत बैठ हाथ पर धरे हाथ
बातें न बना केवल कोरी
तू जला डाल कुछ कैलोरी

रविवार, अगस्त 29, 2010

हम ध्यान चंद को भूले

आज  खेल-दिवस है । मेजर ध्यान चंद सिंह का जन्म दिवस । ध्यान चंद जी का जन्म इलाहाबाद में 29 अगस्त 1905 को श्री समेश्वर दत्त सिंह के घर हुआ था । प्रस्तुत है एक छोटी सी कविता ।

हिटलर भी सहम गया था
बर्लिन में जिनके डर से
वह मेजर ध्यान चंद ही
हॉकी के जादूगर थे


वे इलाहाबाद में जन्मे
वालिद खुद भी थे फौजी
मन लगता था कुश्ती में
थे ध्यान चंद मनमौजी


जब हुए फौज में भर्ती
हॉकी से प्रेम हुआ तब
राष्ट्रीय टीम में पहुँचे
लख उनको चकित हुए सब


जीते ऐमस्टर्डम में
फिर लॉस ऐन्जलिस जीता
बर्लिन में पीट जर्मनी
हिटलर का किया फजीता


हिटलर ने यूँ बहलाया
"तुम म्हारे देश पधारो
जर्मन सेना में आकर
कर्नल का पद स्वीकारो"


पर देशप्रेम के आगे
पद का लालच ठुकराया
अपना भारत हॉकी में
सबसे ऊपर पहुँचाया


ऊपर, ऊपर से ऊपर
इतने ऊपर जा बैठे
हम भूल गए बाकी सब
अपनी ही धुन में ऐंठे


अब ध्यान चंद का जादू
भारत में कहीं नहीं है
हॉकी निराश रोती है
इतनी हारें सह लीं हैं


अब खेल दिवस होता है
पर ध्यान चंद को भूले
हॉकी रख दी कोने में
हम झूल रहे हैं झूले

गुरुवार, अगस्त 26, 2010

ऐसी जगह फटूँगा मैं

इतना क्रोध भला किस कारण
बदन पड़ गया है काला
कैसा डरावना गर्जन है
आँखों में कैसी ज्वाला


फूल रहे हैं गाल तुम्हारे
भरा हुआ जैसे जल हो
क्या है जी शुभ नाम तुम्हारा
लगते तो तुम बादल हो


बादल हो तो बरस पड़ो बस
यही तुम्हारी मंजिल है
घोषित सूखा-ग्रस्त क्षेत्र यह
बारिश के ही काबिल है


जी आपने ठीक पहचाना
किन्तु क्षमा मैं चाहूँगा
अब न यहाँ पर बरस सकूँगा
अन्य किसी दिन आऊँगा


सबका वेतन बढ़ा किन्तु
मेरा न किसी ने नाम लिया
जबकि हमेशा सच्चाई से
मैंने अपना काम किया


अब तो भ्रष्ट आचरण से भी
पीछे नहीं हटूँगा मैं
बारिश जहाँ न हो आवश्यक
ऐसी जगह फटूँगा मैं

रविवार, अगस्त 22, 2010

इण्डियन ऑयल की जय बोल



इण्डियन ऑयल की जय बोल

सतत राष्ट्र की सेवा जिसका
है सर्वोपरि गोल
इण्डियन ऑयल की जय बोल

जो लदाख में, अण्डमान में
दीपक में, सैनिक विमान में
जल में, थल में, आसमान में
दे रहा केरोसिन, पेट्रोल
इण्डियन ऑयल की जय बोल

कच्चा तेल कर रहा शोधन
ऊर्जावान ताकि हो जन-जन
राजमार्ग पर दौड़े जीवन
वाहन करते रहें किलोल
इण्डियन ऑयल की जय बोल

गैस सिलिण्डर में भर भरकर
पहुँचा देता है जो घर घर
सही जगह पर, सही समय पर
कदापि न होती टालमटोल
इण्डियन ऑयल की जय बोल

दिये वैक्स, ऐलपीजी, डीजल
गंधक, हेक्सेन; ल्यूब ऑयल
एटीएफ ; पेट्रोकेमिकल
गैसोलीन और तारकोल
इण्डियन ऑयल की जय बोल

नेटवर्क अब उस हालत में
डिगबोई या पानीपत में
मिलती रिफाइनरी भारत में
ढूँढ़कर देखो जहाँ टटोल
इण्डियन ऑयल की जय बोल

जब जब जवान जूझे रण में
उलझे जीवन और मरण में
की आपूर्ति तेल की क्षण में
न देखा लाभ-हानि को तोल
इण्डियन ऑयल की जय बोल

पेट्रोलियम आत्मनिर्भरता !
लक्ष्य शुरू में इतना भर था
किन्तु हमेशा ही तत्पर था
अदा करने को यह निज रोल
इण्डियन ऑयल की जय बोल

उतरा खरा मानदण्डों पर
जिम्मेदारी ली कन्धों पर
असर लघुद्योग धन्धों पर
पड़ा यूँ, चकित ! गए सब डोल
इण्डियन ऑयल की जय बोल

अब यह आधी सदी पार है
जोश अभी भी बरकरार है
यह विकास को बेकरार है
सफलता के दरवाजे खोल
इण्डियन ऑयल की जय बोल

मॉरीशश हो या श्रीलंका
बजा विदेशों में भी डंका
अब न किसी को बाकी शंका
तेल पर है किसका कण्ट्रोल
इण्डियन ऑयल की जय बोल

यहाँ न कोई खुदगरजी है
जो है, जनता की मरजी है
यह भारत की ऐनर्जी है
राष्ट्र का महारत्न अनमोल
इण्डियन ऑयल की जय बोल

सतत राष्ट्र की सेवा जिसका

है सर्वोपरि गोल
इण्डियन ऑयल की जय बोल !

शुक्रवार, अगस्त 20, 2010

लगवा/कटवा दो इण्टरनेट पिया

कहते हैं दूर के ढोल सुहावने लगते हैं  । हम इस कहावत के सत्य होने की गारण्टी  नहीं ले सकते । कहा भी गया है कि फैशन के इस युग में गारण्टी की उम्मीद न करें । अब तो वारण्टी भी मुश्किल से मिलती है । वह भी शर्तें लागू करके मिलती है  और सामान खराब होने से पूर्व ही या तो किसी न किसी तरह समाप्त हो जाती है  या दुकानदार भूल जाता है । अगर किसी भले आदमी को याद भी है तो फिर से सामान मरम्मत करने के बाद वारण्टी की अवधि में जितने दिन बचे हैं उतने दिन की ही वारण्टी मिलती है । मानो सामान हमने किराए पर लिया हो । भई हमारा तो मानना  है कि वारण्टी पीरियड में यदि सामान खराब होता है तो मरम्मत के बाद वहीं से  फ्रेश वारण्टी चालू होनी चाहिए ।
इसे कहते हैं विषय से भटकना । आये थे हरि भजन को ओटन लगे कपास । बताने आये थे कि किसी चीज के मिलने से पहले और मिलने के बाद उसके प्रति हमारे दृष्टिकोण में कितना  फ़र्क आ जाता है । यही हमने इन्टरनेट के बारे में विचार किया है । पेशे खिदमत हैं दो कविताएं ।    


लगवा दो इण्टरनेट पिया


लगवा दो इण्टरनेट पिया !

अब और न टालमटोल करो
बस बहुत हो गया वेट पिया
लगवा दो इण्टरनेट पिया ॥

युग यह ग्लोबलाइजेशन का
तोड़ दायरा अब आँगन का
खोलूँ दुनिया का गेट पिया
लगवा दो इण्टरनेट पिया

अपनी कहूँ, सुनूँ औरों की
जानूँ बातें सब दौरों की
करलूँ सखियों संग चैट पिया
लगवा दो इण्टरनेट पिया

डायल-अप या ब्रॉडबैण्ड हो
नया कि फिर सेकण्ड-हैण्ड हो
या हो जुगाड़ का सेट पिया
लगवा दो इण्टरनेट पिया

तंगी में लेकर कर्ज़ करो
पर पूरा अपना फ़र्ज़ करो
बस अब न करो तुम लेट पिया
लगवा दो इण्टरनेट पिया

अब और न टालमटोल करो
बस बहुत हो गया वेट पिया
लगवा दो इण्टरनेट पिया ॥




कटवा दो इण्टरनेट पिया


कटवा दो इण्टरनेट पिया !

अब सहा न जाता और अधिक
तुम इसको रखो समेट पिया
कटवा दो इण्टरनेट पिया

खोए ऐसे कम्प्यूटर में
भूले बाहर हो या घर में
हो वाकई तुसी ग्रेट पिया
कटवा दो इण्टरनेट पिया

बर्वाद वक्त इस पर न करो
कैलोरी कुछ तो बर्न करो
तुम बनो न मोटू सेठ पिया
कटवा दो इन्टरनेट पिया

तुम समय न देते मुझको तो
कुछ ध्यान बालकों पर तो दो
हुई शिक्षा मटियामेट पिया
कटवा दो इण्टरनेट पिया

ये चैटिंग- फैटिंग बन्द करो
अब जोशे जवानी मन्द करो
तुम अब न तलाशो डेट पिया
कटवा दो इण्टरनेट पिया

अब सहा न जाता और अधिक
तुम इसको रखो समेट पिया
कटवा दो इण्टरनेट पिया

गुरुवार, अगस्त 19, 2010

अनाज सड़ने में यमराज का हाथ

जब धरती पर अनाज सड़ गया तो बड़ा हंगामा हुआ । सरकार की खूब लानत मलानत हुई । अधिकारियों पर गाजें गिरीं । इससे कुछ अधिकारियों के सिर से खून बहने लगा । उन्हें तत्काल अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में दाखिल कराया गया । बाकी अधिकारीगण जो अनुभवी थे उन्होंने गाज का सामना हेल्मेट पहनकर किया । इससे कुछ गाजें टूटकर इधर-उधर बिखर गईं । उन्हें अन्य फालतू चीजों की तरह ही चपरासी उठा ले गया, शायद घर पर कुछ काम आ जायें । मीडिया की बाँछें खिल गईं पर उसने उन्हें उसी प्रकार छिपाए रखा जिस प्रकार संजीव कुमार शोले फिल्म के ठाकुर का रोल करते समय अपनी बाहों को छिपा लिया करते थे ।

अनाज सड़ने की जाँच होनी थी तो हुई भी । एक सदस्यीय जाँच आयोग को पहले खड़ा किया गया गया फिर जाँच करने के लिए बिठा दिया गया । जाँच आयोग के अध्यक्ष ने जब बैठने और खड़े होने की स्वतंत्रता माँगी तो उन्हें दे दी गयी लेकिन शर्त रखी गयी कि जाँच रिपोर्ट तीन महीने से पहले नहीं आनी चाहिए ।
जब जाँच आयोग अनाज सड़ने के कारणों का पता वैज्ञानिक विधियों से न लगा सका तो उसे अपनी इज़्ज़त पर आँच आती हुई दिखाई देने लगी । उसने कोशिश की कि  इस तरह के पुराने केसों की कोई रिपोर्ट मिल जाए तो कॉपी-पेस्ट मार दिया जाय । लेकिन सभी कोशिशें बेकार गयीं क्योंकि मीडिया लगातार पीछे लगा हुआ था और बैठने-खड़े होने की आजादी का भी हनन करने के प्रयास में लगा था । ऐसे में भला जाँच रिपोर्ट बने तो कैसे ? हालत यह हो गई कि जाँच रिपोर्ट लिखने के लिए स्टेशनरी की  जिस दुकान पर भी एक हज़ार पन्नों की नोटबुक माँगी गयी वहीं मीडिया का एक संवाददाता पहिले से ही लाइव खड़ा हुआ मिला । मानो धरती पर आम आदमी कोई रहता ही न हो । सब संवाददाता हो गए हों ।
असहाय जाँच आयोग एक बाबा के पास चला गया । यहाँ मीडिया को अन्दर जाने की मनाही थी । बाबा को जब मामले की जानकारी दी गई तो सहर्ष ही मदद को तैयार हो गए ।
अन्त में जब जाँच रिपोर्ट आयी तो इतनी सी थी ।

आयोग ने धरती पर अनाज सड़ने के हर संभव कारण की तलाश की लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद वह नहीं मिला । लिहाजा आयोग ने स्वर्ग में जाकर जाँच करने का फैसला किया । स्वर्ग में जब अनाज का नाम लिया गया तो इसे नर्क का मामला बताकर मामला नर्क में ट्रांसफ़र कर दिया गया । पहले तो नर्क के आधिकारियों ने इस मामले पर बात करने से ही इनकार कर दिया लेकिन यमराज के एक भैंसे ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि, "नर्क में आने वाली आत्माओं की संख्या में आशातीत वृद्धि होने के कारण सबको दण्ड देना यहाँ संभव नहीं रह गया था । नरकवासियों को उचित ट्रीटमेंट न मिलने के कारण स्वर्ग और नर्क का फ़र्क लगभग खत्म हो चला था । अपने दुख से दुखी न होकर दूसरे के सुख से दुखी होने वाली कहावत तो आपने सुनी ही होगी । यही स्वर्ग में रहने वाली आत्माओं के साथ हुआ । जब उन्होंने नर्कवासियों को कोई भी प्रताड़ना आदि न मिलने की बात पता चली तो सबने हस्ताक्षर अभियान चलाकर ऊपर भगवान विष्णु से शिकायत कर दी । सुना है यमराज को भगवान विष्णु ने अपने ऑफिस में बुलाकर खूब हड़काया था । और नर्क में इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास करने पर जोर देने की नसीहत भी दी, अन्यथा पद से त्याग-पत्र देने को कहा । उसी दिन यमराज  ने सौ सौ कोड़े सभी आत्माओं को गुस्से में फटकार दिए थे , इससे सबको अंदेशा हो गया था कि अवश्य ही यमराज कोई न कोई कड़ा कदम उठाएंगे । हुआ भी वही ।   उधर धरती पर आत्माओं को भेजने की संभावना पर विचार हुआ । पर वहाँ भारत में जीवन स्तर में लगातार सुधार होते जाने से नारकीय जीवन जीना अपेक्षाकृत बहुत मुश्किल हो गया है । बाकी देश तो हमारे अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं ही । तभी हाल ही में नर्क में आए एक रिश्वतखोर  सचिव ने यमराज को सलाह दी कि क्यों न कुछ आत्माओं को अस्थायी तौर पर कीड़े मकोड़े बनाकर भारत भेज दिया जाय ? इससे यहाँ लोड कम हो जाएगा और जाने वालों को  सजा भी मिलती रहेगी । यमराज के पूछने पर उसने यह भी बताया कि अनाज के भण्डारगृहों में कीड़े पैदा करने की व्यवस्था हो सकती है ।"
अत: आयोग इस निष्कर्ष पर पहुँचा है कि अनाज सड़ने के मामले में धरती पर रहने वाले किसी प्राणी का कोई हाथ नहीं है । यह पूरी तरह से दैवीय प्रकोप है ।

बुधवार, अगस्त 18, 2010

रनदीप को धन्यवाद भी तो बोलो

पिछले एकदिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय मैच में सहवाग का शतक न हो सका । अच्छा नहीं लगा । जब भारत को जीतने के लिए एक रन की आवश्यकता थी तो सहवाग को भी अपना शतक पूरा करने के लिए एक रन ही चाहिए था । दोनों टीमों का स्कोर बराबर हो चुका था । श्रीलंकाई गेंदबाज सूरज रनदीप ने दो बॉल फेंकीं भी लेकिन सहवाग एक रन न ले सके ।

तभी एक खुराफाती आइडिया रनदीप को आया या फिर उन्हें बताया गया कि सहवाग का शतक रोका जा सकता है । यह भावना कोई नई नहीं है । ईर्ष्या मनुष्य का स्वभाव ही है । यहाँ जब अपने ही देश के साथी खिलाड़ी एक दूसरे को शतक या दोहरा शतक बनाते नहीं देखना चाहते तो विरोधी टीम के खिलाड़ियों की तो बात ही क्या ?
सचिन जब एक बार टेस्ट मैच में 194 पर थे तो तत्कालीन कप्तान ने पारी समाप्ति की घोषणा कर दी थी । सचिन जब पहली बार एकदिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय मैच में 180 रन के ऊपर पहुँचे थे तो भी उन्हें पर्याप्त बॉल खेलने को न मिल सकीं । गांगुली भी जब 180 के पार पहुँचे तो साथी खिलाड़ी ने पर्याप्त सहयोग नहीं किया था । ऐसे उदाहरणों की कमी नहीं है ।

लेकिन यहाँ मुद्दा सहवाग के शतक से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए । रनदीप ने जानबूझकर नोबॉल फेंककर सहवाग के खिलाफ भले कोई अपराध नहीं किया हो परन्तु उन्होंने श्रीलंका के समर्थकों के खिलाफ अपराध किया है । उन्होंने क्रिकेट के खिलाफ अपराध अवश्य किया है । अन्तर्राष्ट्रीय मैच में खिलाड़ी से अपेक्षा की जाती है कि वह अन्तिम क्षण तक हार नहीं मानेगा और जीतने की कोशिश करता रहेगा । इस अपेक्षा के खिलाफ रनदीप ने अपराध किया है । एक तरह से उनका यह कृत्य मैच-फिक्सिंग की श्रेणी में आता है ।

इसलिए यदि उनके ऊपर जानबूझकर नोबॉल करने का मामला बनता है तो रनदीप को सजा अवश्य मिलनी चाहिए । जानबूझकर नोबॉल फेंकना अपराध है चाहे वह पारी की पहली बॉल ही क्यों न हो ।

रनदीप ने सहवाग से माफी माँगकर अपना काम कर दिया है । क्योंकि उसने सहवाग का शतक नहीं होने दिया । पर भारतीय टीम को भी रनदीप का धन्यवाद करना चाहिए कि उन्होंने हमें जानबूझकर जिताया ।

बुधवार, अगस्त 04, 2010

तुम्हारी बात में दम तो है

ईश्वर का आविष्कार कब और किसने किया यह तो ठीक ठीक ज्ञात नहीं हो सका है पर इतना अवश्य देखने में आता है कि यह आविष्कार मानव के लिए किसी भी अन्य आविष्कार से उपयोगी सिद्ध हुआ है । एक तरह से यह मनुष्य के लिए वरदान है । ज्ञात इतिहास में तो खैर किसी न किसी रूप में ईश्वर का जिक्र मिल ही जाता है पर प्रागैतिहासिक काल में जब ईश्वर का आविष्कार नहीं हुआ होगा तब लोग अपने किसी प्रियजन की मृत्यु पर किसे दोषी ठहराते होंगे ? अनसुलझे रहस्यों का बोझ किसके सिर डालते होंगे ? क्या उस जमाने में लोग ज्यादा टेंशन लेते होंगे ? अगर ऐसा होता तो आज भी मनुष्य के अलावा अन्य प्राणियों को आदमी से ज्यादा टेंशन में रहना चाहिए । पर ऐसा दिखता तो है नहीं । तो क्या ईश्वर का आविष्कार निष्फल गया ? या अन्य प्राणियों ने हमारे ईश्वर से  भी अच्छे किसी ईश्वर के बारे में जान लिया है ?

जो भी हो, यह एक ऐसा विषय है जिसके बारे में कोई भी कुछ भी धारणा बना सकता है । कोई कह देता है कि मैं ही ईश्वर हूँ । कोई कहता है कि मैं ईश्वर का पुत्र हूँ या कोई कहता है कि मैं ईश्वर का दूत हूँ । जिस ईश्वर का अभी तक पक्के तौर पर पता ही नहीं है उसकी  निन्दा के अपराध में न जाने कितने व्यक्तियों को मौत की सजा अब तक मिल चुकी होगी । उस ईश्वर के नाम पर शपथ लेकर लोग देश पर राज किये जा रहे हैं । लूट भी रहे हैं देश को । यह ऐसा विषय है जिस पर बहुत सारे नए नए तरीकों से सोचा गया लेकिन मूल धारणा वही रही है । भक्ति आंदोलन, धर्मयुद्ध और भी न जाने क्या क्या होता जा रहा है ।

इसी तरह जब आज सुबह का अखबार देखा तो पत्नी ने उसमें २२ युवाओं के मरने की खबर पढ़ी जो गंगोत्री काँवड़ लेने गए थे । यह समाचार पढ़कर उसका प्रश्न था कि यदि भगवान है तो वह इस तरह के हादसों को रोकता क्यों नहीं है ? पहले तो मुझे उसे भगवान के होने पर संदेह करते हुए बड़ा आश्चर्य हुआ । वह जो हमारे मुख से भगवान के प्रति कोई संदेहास्पद बयान सुनते ही नाराज हो जाती है कैसे स्वयं उस पर संदेह कर रही है । फिर हमने भी मौका देखकर अपनी थियोरी सुना दी उसे : " हो सकता है कि मरने के बाद कोई बहुत अच्छी स्थिति होती हो । वहाँ जाकर व्यक्ति महसूस करता हो कि "अरे ! मैं कहाँ वहाँ फालतू के चक्कर में पड़ा था ? पहले क्यों नहीं मरा मैं ?" हो सकता है जीव को मरने से बचने का प्रयास करते देखकर ईश्वर को हँसी आ जाती हो कि देखो कैसा मूर्ख है ? इसको पता ही नहीं कि मरने के बाद कितना आनंद  है ।"

यह सुनकर पत्नी का प्रश्न था कि फिर ईश्वर जीव को बता क्यों नहीं देते कि मरने से न डरो । मरने के बाद तो बहुत आनंद है ।

हमने समझाया कि यदि ऐसा हो जाय तो हो सकता है सभी मरने के लिए दौड़ पड़ें और सृष्टि का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाय । हो सकता है कि ईश्वर ने हमें इस शरीर में किसी अपराध में कैद करके रखा हो कि तुम्हें इतने साल की कैद है ।

पत्नी ने कहा, " तुम्हारी बात में दम तो है ।"

रविवार, अगस्त 01, 2010

घोटालों का स्वर्ण-पदक

कॉमनवेल्थ गेम दिल्ली में हों या कलकत्ता में ।
खबरें अमरउजाला में पढ़ लें  या जनसत्ता में ॥

भारत की अनेकता में एकता जरूर दिखेगी ।
लाख रोक लो किन्तु ब्लैक में टिकिट अवश्य बिकेगी ॥

चाहे लाख कोशिशें कर लें हमसे जलने वाले ।
चाहे तो सरकार स्वयं अपनी ताकत अजमा ले ॥

चाहे अपने सभी खिलाड़ी बिना पदक रह जाएं ।
चाहें तो मेहमान खिलाड़ी सब मेडल ले जाएं ॥

लेकिन अपने फैनगणों को हम न निराश करेंगे ।
घोटालों का स्वर्ण-पदक हम निश्चित ही जीतेंगे ॥

मित्रगण