राम जी ! बहुत मुबारकबाद !
अब वनवास न जाना होगा
बोल दो भक्तों को धन्यवाद
राम जी ! बहुत मुबारकबाद !
अपनी जन्मभूमि पर रहना
इतनी खुशी मिली, क्या कहना
कष्ट पड़ा भक्तों को सहना
सभी को देनी होगी दाद
राम जी ! बहुत मुबारकबाद !
न्याय आपके साथ कर दिया
मुकुट आपके शीश धर दिया
खुशियों से संसार भर दिया
आपकी सुनी खूब फरियाद
राम जी ! बहुत मुबारकबाद !
तीन पात ढाक के मिले हैं
अब क्या शिकवे और गिले हैं
फटे आपके सभी सिले हैं
आप भी खूब करोगे याद
राम जी ! बहुत मुबारकबाद !
अब वनवास न जाना होगा
बोल दो भक्तों को धन्यवाद
राम जी ! बहुत मुबारकबाद !
संभव है कि इस ब्लॉग पर लिखी बातें मेरी विचारधारा का प्रतिनिधित्व न करती हों । यहाँ लिखी बातें विभिन्न दृष्टिकोणों से सोचने का परिणाम हैं । कृपया किसी प्रकार का पूर्वाग्रह न रखें ।
गुरुवार, सितंबर 30, 2010
बुधवार, सितंबर 29, 2010
लो इक्कीसवीं सदी आयी
क्यों चारो ओर उदासी है ?
मन में कुछ आशंका सी है
शायद आ पहुँचा है वह क्षण
जब रक्त पिपासु बने कण-कण
विधि का विधान सर्वदा अटल
मन पूछ रहा क्या होगा कल
क्या बन्धु लड़ेंगे आपस में
यह प्रश्न समाया नस-नस में
क्या संभव है यह किसी भाँति
हो बन्द युद्ध हो जाय शांति
यदि लहू बहा तो क्या होगा
जिस ओर बहे मेरा होगा
मेरे ही पुत्रों का यह रण
जाने कैसा होगा भीषण
मैं किसकी जय कामना करूँ
अब भला कौन विधि धैर्य धरूँ
किससे अपना दुख-दर्द कहूँ
चुप हो कैसे यह पीर सहूँ
दोनों में से किसको चुन लूँ
मैं ही तो कर्ण व अर्जुन हूँ
अब नहीं महाभारत का रण
फिर चिन्तित हो तुम किस कारण
वह युगों पुराना प्रश्न कठिन
है खड़ा सामने उत्तर बिन
खाए जाता है कुतर कुतर
क्यों माँग रहा अब तक उत्तर
कुन्ती अब तक न समझ पायी
लो इक्कीसवीं सदी आयी
मन में कुछ आशंका सी है
शायद आ पहुँचा है वह क्षण
जब रक्त पिपासु बने कण-कण
विधि का विधान सर्वदा अटल
मन पूछ रहा क्या होगा कल
क्या बन्धु लड़ेंगे आपस में
यह प्रश्न समाया नस-नस में
क्या संभव है यह किसी भाँति
हो बन्द युद्ध हो जाय शांति
यदि लहू बहा तो क्या होगा
जिस ओर बहे मेरा होगा
मेरे ही पुत्रों का यह रण
जाने कैसा होगा भीषण
मैं किसकी जय कामना करूँ
अब भला कौन विधि धैर्य धरूँ
किससे अपना दुख-दर्द कहूँ
चुप हो कैसे यह पीर सहूँ
दोनों में से किसको चुन लूँ
मैं ही तो कर्ण व अर्जुन हूँ
अब नहीं महाभारत का रण
फिर चिन्तित हो तुम किस कारण
वह युगों पुराना प्रश्न कठिन
है खड़ा सामने उत्तर बिन
खाए जाता है कुतर कुतर
क्यों माँग रहा अब तक उत्तर
कुन्ती अब तक न समझ पायी
लो इक्कीसवीं सदी आयी
मंगलवार, सितंबर 28, 2010
चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है
कविता लिखना अलग बात है, और मंच पर श्रोताओं के सामने कविता पाठ करना बिल्कुल दूसरी बात है । जैसे ब्लॉगर को टिप्पणी से खास लगाव हो जाता है, वैसे ही कवि को तालियाँ विशेष प्रिय होती हैं । किसी न किसी बहाने वे श्रोताओं को तालियों के लिए उकसाते रहते हैं । मंच पर कवियों की आपसी खींचतान व एक दूसरे पर की जाने वाले टिप्पणियाँ भी कम मनोरंजक नहीं होतीं ।
कुछ इसी तरह के नज़ारे तब देखने को मिले जब पानीपत रिफाइनरी की टाउनशिप में कल रात अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का आयोजन हुआ । यहाँ कवियों और कवयित्रियों ने अपने लटकों झटकों से उपस्थित कर्मचारियों को सपरिवार मोहित कर लिया ।
अलीगढ़ से आये विष्णु सक्सेना ने कवि सम्मेलन का शुभारम्भ सरस्वती वंदना से किया ।
कवि सम्मेलन का संचालन कर रहे थे सुनील जोगी । लखनऊ से आयीं डॉक्टर सुमन दुबे और जोगी जी के बीच काफी मजेदार वार्तालाप चला । जिसका श्रोताओं ने भरपूर आनंद लिया । दोनों ओर से इशारों इशारों में शब्दवाण छोड़े गए इससे माहौल खुशनुमा हो गया । सुमन दुबे ने कहा कि वे झाँसी की रानी बनकर काँटों को जमीन में दफ़ना देंगी तो सुनील जोगी महाराणा प्रताप बनने पर उतारू हो गए ।
सुमन दुबे के कण्ठ की मिठास ने सबका दिल छू लिया । उन्होंने शिकायत की कि
विष्णु सक्सेना का गीत तालियों के बीच गाया गया । इनका कण्ठ भी मधुर है ।
अरुण जैमिनी के खड़े होते ही श्रोताओं के ठहाकों और तालियों से सभागार गूँजने लगा । हाँलांकि इन्होंने अपनी बहुत सुनी सुनाई राधेश्याम और सौ ग्राम सेब वाली कविता ही सुनाई लेकिन चुटुकुलों से श्रोताओं का खूब मनोरंजन किया । इनकी तो हर बात ही चुटकुला लगती है । बानगी देखिए:
सारे देश में ईसाई मिशनरी हैं । लेकिन हरियाणा में ईसाई मिशनरी क्यों नहीं है ? इसके पीछे कारण है । यहाँ भी ईसाई मिशनरी आए थे । लोगों को इकट्ठा किया, भाषण दिया । उसके बाद एक चौधरी ने पूछा "भाई नूँ बता यो जीसस कौण है ?" वे बोले कि "जीसस ईश्वर का पुत्र है" । इस पर चौधरी बोला कि "भाई हमारे यहाँ बाप के रहते बेटे को कोई नहीं पूछता । जब ईश्वर मर जाए तब अइयो । इब जाओ ।"
बुद्धिनाथ मिश्र यहाँ पिछली बार भी आये थे । उन्होंने अपने गीतों से समाँ बाँध दिया ।
डॉक्टर सीता सागर ने शहीदों की याद में मीठे कण्ठ से गीत सुनाकर माहौल को देशभक्ति मय बना दिया । शहीद भगत सिंह के जन्मदिवस के अवसर पर इन्होंने उन्हें श्रद्धांजलि दी ।
मुझे सबसे अधिक प्रभावित किया राहत इंदौरी ने । इन्हें मैंने पहली बार ही सुना । इन्होंने जिस मस्ती में डूबकर अपने शेर सुनाए उसमें श्रोताओं को भी डुबो दिया । सस्ते शेरों से शुरू करके धीरे धीरे जिस तरह ये ऊँचाई की तरफ ले गए वह स्टाइल बहुत भाया । एक शेर पेश है:
कुछ इसी तरह के नज़ारे तब देखने को मिले जब पानीपत रिफाइनरी की टाउनशिप में कल रात अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का आयोजन हुआ । यहाँ कवियों और कवयित्रियों ने अपने लटकों झटकों से उपस्थित कर्मचारियों को सपरिवार मोहित कर लिया ।
अलीगढ़ से आये विष्णु सक्सेना ने कवि सम्मेलन का शुभारम्भ सरस्वती वंदना से किया ।
कवि सम्मेलन का संचालन कर रहे थे सुनील जोगी । लखनऊ से आयीं डॉक्टर सुमन दुबे और जोगी जी के बीच काफी मजेदार वार्तालाप चला । जिसका श्रोताओं ने भरपूर आनंद लिया । दोनों ओर से इशारों इशारों में शब्दवाण छोड़े गए इससे माहौल खुशनुमा हो गया । सुमन दुबे ने कहा कि वे झाँसी की रानी बनकर काँटों को जमीन में दफ़ना देंगी तो सुनील जोगी महाराणा प्रताप बनने पर उतारू हो गए ।
सुमन दुबे के कण्ठ की मिठास ने सबका दिल छू लिया । उन्होंने शिकायत की कि
लोग कहते हैं कि कोयल बनके गाना छोड़ दो ।इसके बाद श्री गुरु सक्सेना जी ने अपनी खास स्टाइल से श्रोताओं को हँसा हँसाकर लोटपोट कर दिया । सुनील जोगी यहाँ भी चुटकी लेने से नहीं चूके । उन्होंने गुर सक्सेना जी का परिचय कराते हुए कहा कि, " जो शाल को तह लगाने में मग्न हैं और बारात वाला सूट पहनकर आये हैं वे गुरु सक्सेना हैं । इनसे कहा गया कि चश्मा न लगाया करो कुरूप दिखते हो तो बोले,
"कि चश्मा न लगाएं तो तुम कुरूप दिखते हो ।""जोगी जी ने कहा इनके बारे में कहा कि
"इतने कमजोर हुए ये तेरी जुदाई से,
चींटी खींच ले जाती है इनको चारपाई से ।"इस पर गुरु सक्सेना ने कहा कि, "चींटी खींच ले जाती है तो किसी मकसद से ही ले जाती होगी ।" इनकी खास बात है कि कविता को तेज आवाज में शुरू करते हैं और धीमे होते जाते हैं ।
विष्णु सक्सेना का गीत तालियों के बीच गाया गया । इनका कण्ठ भी मधुर है ।
"जिससे जितना प्यार करोगे, उतना रोओगे
दिल की जमीं पर जब फसल यादों की बोओगे"
अरुण जैमिनी के खड़े होते ही श्रोताओं के ठहाकों और तालियों से सभागार गूँजने लगा । हाँलांकि इन्होंने अपनी बहुत सुनी सुनाई राधेश्याम और सौ ग्राम सेब वाली कविता ही सुनाई लेकिन चुटुकुलों से श्रोताओं का खूब मनोरंजन किया । इनकी तो हर बात ही चुटकुला लगती है । बानगी देखिए:
सारे देश में ईसाई मिशनरी हैं । लेकिन हरियाणा में ईसाई मिशनरी क्यों नहीं है ? इसके पीछे कारण है । यहाँ भी ईसाई मिशनरी आए थे । लोगों को इकट्ठा किया, भाषण दिया । उसके बाद एक चौधरी ने पूछा "भाई नूँ बता यो जीसस कौण है ?" वे बोले कि "जीसस ईश्वर का पुत्र है" । इस पर चौधरी बोला कि "भाई हमारे यहाँ बाप के रहते बेटे को कोई नहीं पूछता । जब ईश्वर मर जाए तब अइयो । इब जाओ ।"
बुद्धिनाथ मिश्र यहाँ पिछली बार भी आये थे । उन्होंने अपने गीतों से समाँ बाँध दिया ।
डॉक्टर सीता सागर ने शहीदों की याद में मीठे कण्ठ से गीत सुनाकर माहौल को देशभक्ति मय बना दिया । शहीद भगत सिंह के जन्मदिवस के अवसर पर इन्होंने उन्हें श्रद्धांजलि दी ।
मुझे सबसे अधिक प्रभावित किया राहत इंदौरी ने । इन्हें मैंने पहली बार ही सुना । इन्होंने जिस मस्ती में डूबकर अपने शेर सुनाए उसमें श्रोताओं को भी डुबो दिया । सस्ते शेरों से शुरू करके धीरे धीरे जिस तरह ये ऊँचाई की तरफ ले गए वह स्टाइल बहुत भाया । एक शेर पेश है:
"सितारों की नुमाइश में खलल पड़ता है,संचालक महोदय ने राजनीतिज्ञों की खूब टाँग खींची । अंत में श्री अशोक ’चक्रधर’ ने कार्यक्रम का समापन किया । इनका तो अंदाज ही निराला है । शब्दों के जादूगर हैं । शब्दों के अर्थ को कहाँ से कहाँ ले जाएंगे कोई पहले से सोच भी नहीं पाता । चक्रधर जी ने जहाँ शहीद भगत सिंह को याद किया वहीं स्वर्गीय श्री कन्हैयालाल नंदन जी को भी याद किया । उन्होंने आशा व्यक्त की कि हिन्दी राज करेगी । हिन्दी को केवल मनोरंजन की भाषा बनाने के बजाय इन्होंने इसे ज्ञान की भाषा बनाने पर बल दिया । जब कवि सम्मेलन का समापन हुआ तो बारह से ज्यादा बज गए थे ।
चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है ।"
सोमवार, सितंबर 27, 2010
कुआँ खोदकर पानी पीना
पिछले दिनों हमारे शुभचिन्तकों ने सूचित किया कि स्वप्नलोक पर विषाणु सक्रिय हो रहे हैं । उनकी सभी सिफारिशों को अमली जामा पहनाते हुए हमने एक्कोएक विजेट को हटा डाला । पर साइड में रैण्डमली चलने वाला "स्वप्नलोक में अब तक" वाला रोल हमें बहुत प्रिय था । जिस साइट से इसके लिए आउट सोर्स किया था शायद उसी से वायरस का आक्रमण हो रहा था ।
इन मामलों में अपनी जानकारी तो शून्य थी । अब क्या हो ?
आखिर हमने गहरे पानी में उतरने का फैसला किया । और उसके लिए कुछ HTML सीखा । कुछ java script सीखा ।
और तैयार किया यह विजेट जो अभी साइड में चल रहा है । जरा बताइये तो मीठा है या खारा है अपने खोदे कुएं का पानी ?
इन मामलों में अपनी जानकारी तो शून्य थी । अब क्या हो ?
आखिर हमने गहरे पानी में उतरने का फैसला किया । और उसके लिए कुछ HTML सीखा । कुछ java script सीखा ।
और तैयार किया यह विजेट जो अभी साइड में चल रहा है । जरा बताइये तो मीठा है या खारा है अपने खोदे कुएं का पानी ?
शहीद शिरोमणि भगत सिंह
आज अमर शहीद भगत सिंह का जन्मदिवस है । 27 सितम्बर 1907 भगत सिंह का जन्म पंजाब प्रान्त के लायलपुर जिले के बंगा नामक गाँव में हुआ था । जो अब पाकिस्तान में है ।
गुरुवार, सितंबर 23, 2010
देश की अस्मिता के लिए मातृभाषा की आवश्यकता
प्रस्तुत निबंध हमारी कम्पनी द्वारा आयोजित निबंध प्रतियोगिता में लिखकर दिया है । देने से पहले एक कॉपी करा ली ताकि और कुछ इनाम विनाम मिले या न मिले पर एक पोस्ट तो निकाल ही ली जाए अपनी इतनी मेहनत के बाद ।
शनिवार, सितंबर 18, 2010
पाकिस्तान का अप्रत्याशित प्रस्ताव
पाकिस्तान के हालात दिन पर दिन खराब होते जा रहे थे । कहीं बाढ़ कहीं आतंकवाद की मार तो कहीं गरीबी । अब उसकी हालत ऐसे रोगी जैसी हो रही थी जो जीवनरक्षक यंत्रों के सहारे ही जीवित हो । फिर भी वह भारत में घुसपैठिये भेजने से बाज नहीं आ रहा था । उसकी जिद थी कि उसे किसी भी कीमत पर कश्मीर चाहिए ।
इधर भारत भी पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले कश्मीर से अपना दावा छोड़ने को तैयार न था । ऐसे में भारत ने जब संयुक्त राष्ट्र में अपनी माँग को दोहराया तो पाकिस्तान ने ऐसा प्रस्ताव रख दिया जिसकी उम्मीद शायद किसी को सपने में भी न होगी । उसने कहा कि पाकिस्तान चाहता है कि या तो पूरा कश्मीर ही उसे सौंप दिया जाय या फिर हमारे कब्जे वाले कश्मीर को ही नहीं बल्कि पूरे पाकिस्तान को ही भारत में विलय कर लिया जाय । इस प्रस्ताव से पूरी दुनिया में सनसनी फैल गयी । अमेरिका और चीन वालों ने अपने अपने माथे ठोक लिये । इनकी देखादेखी (तथाकथित) ग्रेट ब्रिटेन और उत्तर कोरिया ने भी अपने माथे ठोक लिए । देखते ही देखते पूरा सभागार ठक ठक की आवाजों से गूँजने लगा । शान्ति की अपील की गयी तो शान्ति ने आकर सबको शान्त कर दिया । अब सबकी नज़रें भारत पर टिकी थीं । भारत खड़ा खड़ा शरमा रहा था । कोई शर्मा जी भी शायद इतना न शरमाते होंगे । ऐसा अवसर उसके जीवन में बहुत शताब्दियों बाद आया था कि सारा संसार किसी निर्णय की आशा में उसकी ओर देखे ।
इस प्रस्ताव पर फैसला लेना इतना आसान नहीं था । जिस देश को एक फाँसी की सजा प्राप्त कैदी की माफी पर निर्णय लेने में कई साल लग जाएं वह भला इतना बड़ा निर्णय तुरन्त कैसे ले सकता था । इसके लिए कुछ समय लेने की बात कहकर फैसले को टाल दिया गया । लेकिन इससे देश में एक बहस चल पड़ी । जो लोग अब तक भारत के विभाजन पर आँसू बहाते नहीं थकते थे वे पाकिस्तान के विलय का विरोध कर रहे थे । देश में हिन्दुओं के अल्पसंख्यक हो जाने की आशंकाए व्यक्त की जा रहीं थी । प्रचार किया जा रहा था कि पाकिस्तान हमारे ऊपर बोझ बन जाएगा । हमारी सारी तरक्की धरी रह जाएगी । यह कोई अन्तर्राष्ट्रीय साजिश है या तालिबान का षडयंत्र है ।
वहीं कुछ लोग इसपर फूले नहीं समा रहे थे । जो भारत छोड़कर पाकिस्तान जाना चाहते थे उनके लिए अब भारत में ही पाकिस्तान का इंतजाम हो जाएगा ।
उधर स्वर्ग में बैठे हमारे स्वतंत्रता प्राप्त करने वाले नेता महात्मा गाँधी, जिन्ना, नेहरू जी आदि में बहस चल रही थी ।
हमारी संसद ने भी जिम्मेदारी जनता पर डालते हुए इस प्रश्न पर जनमत कराने का निर्णय ले लिया । जनमत संग्रह के लिए मतदान हो गया । परिणाम घोषित होने की तारीख भी आ गयी । पर एक अजीब सी शान्ति ने पूरे संसार को और देश को अपने आगोश में ले रखा था । टीवी चैनल भी कुछ बहस आदि से परहेज कर रहे थे । जैसे ही रुझान देखने के लिए मैंने अपने टीवी पर न्यूज चैनल लगाया । पत्नी ने मुझे जगा दिया और इस तरह यह सपना अधूरा ही रह गया ।
इधर भारत भी पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले कश्मीर से अपना दावा छोड़ने को तैयार न था । ऐसे में भारत ने जब संयुक्त राष्ट्र में अपनी माँग को दोहराया तो पाकिस्तान ने ऐसा प्रस्ताव रख दिया जिसकी उम्मीद शायद किसी को सपने में भी न होगी । उसने कहा कि पाकिस्तान चाहता है कि या तो पूरा कश्मीर ही उसे सौंप दिया जाय या फिर हमारे कब्जे वाले कश्मीर को ही नहीं बल्कि पूरे पाकिस्तान को ही भारत में विलय कर लिया जाय । इस प्रस्ताव से पूरी दुनिया में सनसनी फैल गयी । अमेरिका और चीन वालों ने अपने अपने माथे ठोक लिये । इनकी देखादेखी (तथाकथित) ग्रेट ब्रिटेन और उत्तर कोरिया ने भी अपने माथे ठोक लिए । देखते ही देखते पूरा सभागार ठक ठक की आवाजों से गूँजने लगा । शान्ति की अपील की गयी तो शान्ति ने आकर सबको शान्त कर दिया । अब सबकी नज़रें भारत पर टिकी थीं । भारत खड़ा खड़ा शरमा रहा था । कोई शर्मा जी भी शायद इतना न शरमाते होंगे । ऐसा अवसर उसके जीवन में बहुत शताब्दियों बाद आया था कि सारा संसार किसी निर्णय की आशा में उसकी ओर देखे ।
इस प्रस्ताव पर फैसला लेना इतना आसान नहीं था । जिस देश को एक फाँसी की सजा प्राप्त कैदी की माफी पर निर्णय लेने में कई साल लग जाएं वह भला इतना बड़ा निर्णय तुरन्त कैसे ले सकता था । इसके लिए कुछ समय लेने की बात कहकर फैसले को टाल दिया गया । लेकिन इससे देश में एक बहस चल पड़ी । जो लोग अब तक भारत के विभाजन पर आँसू बहाते नहीं थकते थे वे पाकिस्तान के विलय का विरोध कर रहे थे । देश में हिन्दुओं के अल्पसंख्यक हो जाने की आशंकाए व्यक्त की जा रहीं थी । प्रचार किया जा रहा था कि पाकिस्तान हमारे ऊपर बोझ बन जाएगा । हमारी सारी तरक्की धरी रह जाएगी । यह कोई अन्तर्राष्ट्रीय साजिश है या तालिबान का षडयंत्र है ।
वहीं कुछ लोग इसपर फूले नहीं समा रहे थे । जो भारत छोड़कर पाकिस्तान जाना चाहते थे उनके लिए अब भारत में ही पाकिस्तान का इंतजाम हो जाएगा ।
उधर स्वर्ग में बैठे हमारे स्वतंत्रता प्राप्त करने वाले नेता महात्मा गाँधी, जिन्ना, नेहरू जी आदि में बहस चल रही थी ।
हमारी संसद ने भी जिम्मेदारी जनता पर डालते हुए इस प्रश्न पर जनमत कराने का निर्णय ले लिया । जनमत संग्रह के लिए मतदान हो गया । परिणाम घोषित होने की तारीख भी आ गयी । पर एक अजीब सी शान्ति ने पूरे संसार को और देश को अपने आगोश में ले रखा था । टीवी चैनल भी कुछ बहस आदि से परहेज कर रहे थे । जैसे ही रुझान देखने के लिए मैंने अपने टीवी पर न्यूज चैनल लगाया । पत्नी ने मुझे जगा दिया और इस तरह यह सपना अधूरा ही रह गया ।
शुक्रवार, सितंबर 17, 2010
आवश्यकता है एक अनुवादक की
किसी अहिंसावादी को एक मच्छर ने काट लिया । अहिंसावादी ने मच्छर को देखा तो सोचा स्वयं ही उड़ जाएगा हिंसा करने से क्या फायदा ? लेकिन शायद मच्छर भी पूरा होमवर्क करके आया था । उसको भी पता था कि मैं जिसका रक्त चूस रहा हूँ वह निरा अहिंसावादी है । अत: वह निभर्य होकर अपने काम में लगा रहा ।
अहिंसक को विश्वास हो गया कि यह बिना बलप्रयोग के रक्त चूसना बंद नहीं करेगा । फिर भी उन्होंने कानून को अपने हाथ में लेना उचित न समझा । उस मच्छर को वे किसी तरह एक बोतल में बन्द करके थाने ले गए । वहाँ जब उन्होंने रिपोर्ट लिखवानी चाही तो पहले तो थानेदार ने रिपोर्ट लिखने में असमर्थता जताई लेकिन सत्याग्रह की धमकी देने पर रिपोर्ट दर्ज कर ली गई । मच्छर को न्यायाधीश के सामने प्रस्तुत किया गया जिन्होंने उसे पुलिस रिमाण्ड पर भेज दिया ।
पुलिस ने पूछताछ में पाया कि मच्छर दोषी है । मच्छर को जेल भेज दिया गया । जेल में उसकी सेल बनी वह बोतल जिसमें वह बन्द था । उसके लिए एक वकील की व्यवस्था की गयी ।
पहली सुनवाई पर मच्छर के वकील ने न्यायाधीश से माँग की कि मच्छर की भाषा का अंग्रेजी अनुवाद करने के लिए किसी अनुवादक की व्यवस्था की जाय ।
ऐसा कोई अनुवादक अब तक नहीं मिला जो मच्छर की भाषा का अंग्रेजी में अनुवाद कर सके । तलाश जारी है । यदि आप को यह विद्या आती हो तो रोजाना अखबार पढ़ते रहें । इसके विज्ञापन निकलते रहते हैं । यहाँ ब्लॉगिंग में क्या रखा है ?
लेकिन एक बात समझ नहीं आयी । पुलिस ने मच्छर से पूछताछ किस भाषा में की होगी ?
अहिंसक को विश्वास हो गया कि यह बिना बलप्रयोग के रक्त चूसना बंद नहीं करेगा । फिर भी उन्होंने कानून को अपने हाथ में लेना उचित न समझा । उस मच्छर को वे किसी तरह एक बोतल में बन्द करके थाने ले गए । वहाँ जब उन्होंने रिपोर्ट लिखवानी चाही तो पहले तो थानेदार ने रिपोर्ट लिखने में असमर्थता जताई लेकिन सत्याग्रह की धमकी देने पर रिपोर्ट दर्ज कर ली गई । मच्छर को न्यायाधीश के सामने प्रस्तुत किया गया जिन्होंने उसे पुलिस रिमाण्ड पर भेज दिया ।
पुलिस ने पूछताछ में पाया कि मच्छर दोषी है । मच्छर को जेल भेज दिया गया । जेल में उसकी सेल बनी वह बोतल जिसमें वह बन्द था । उसके लिए एक वकील की व्यवस्था की गयी ।
पहली सुनवाई पर मच्छर के वकील ने न्यायाधीश से माँग की कि मच्छर की भाषा का अंग्रेजी अनुवाद करने के लिए किसी अनुवादक की व्यवस्था की जाय ।
ऐसा कोई अनुवादक अब तक नहीं मिला जो मच्छर की भाषा का अंग्रेजी में अनुवाद कर सके । तलाश जारी है । यदि आप को यह विद्या आती हो तो रोजाना अखबार पढ़ते रहें । इसके विज्ञापन निकलते रहते हैं । यहाँ ब्लॉगिंग में क्या रखा है ?
लेकिन एक बात समझ नहीं आयी । पुलिस ने मच्छर से पूछताछ किस भाषा में की होगी ?
गुरुवार, सितंबर 16, 2010
हम ही रोटी हम ही अचार
इस ब्लॉगिंग रूपी बगिया में
हम ब्लॉगर भँवरे आते हैं
कर करके कितने ही जुगाड़
हम अपना ब्लॉग सजाते हैं
मन के विचार मानो कलियाँ
जो खिलकर बनतीं पोस्ट फूल
टिप्पणियों को मकरन्द समझ
मँडराते रहते झूल झूल
हम लिखकर पोस्ट बैठ जाते
अब टिप्पणियों का इंतजार
कुछ उधार वापस मिल जाएं
चढ़ जाए कुछ कर्ज का भार
यदि हो आवश्यक काम कहीं
उठते हैं बुझे हुए मन से
आत्मा ब्लॉग पर ही रहती
बाहर जाते हैं बस तन से
अच्छी मिल जाएं या कि बुरी
कुछ मिले प्रशंसा या निन्दा
अवसर हो घमण्ड करने का
या फिर बेशक हों शर्मिन्दा
हम लेखक, और प्रकाशक भी
हम पाठक, हम टिप्पणीकार
हम नामचीन, हम बेनामी
हम ही रोटी, हम ही अचार
हम चर्चित, चर्चाकार हमीं
हम ही कहते, "है अर्ज़ किया"
इरशाद बोलकर हमने ही
फिर वाह वाह का फ़र्ज़ किया
हम झगड़ालू, हम अशान्तिप्रिय
तू तू मैं भी करते हैं
हा हा ठी ठी भी कर लेते
फिर शान्तिपाठ भी पढ़ते हैं
घर पर पत्नी के डण्डे खा
ब्लॉग पर पुरुषवादी बनते
कर दें पतिदेव पिटाई भी
नारीवादी बनकर तनते
अपने बारे में कुछ लिख दो
यह आभासी दुनिया ठहरी
चिल्ला चिल्लाकर खूब कहो
समझो पब्लिक तो है बहरी
साइकिल की दुकान खोली हो
पर बोले रेल चलाते हैं
चाहे पान ही लगाते हों
कहते हथियार बनाते हैं
ये धंधा करें कमीशन का
पर बहुत बड़े व्यवसायी हैं
बूढ़ी अम्मा प्रोफाइल में
लिखती अपने को ताई हैं
लिख दिया कि हैं कलकत्ते में
पर ड्यूटी अपने साथ करें
हर पोस्ट सीरियस लिखते हैं
बच्चों से दो दो हाथ करें
अब कहें कहाँ तक आप कहो
बस अभी काम पर जाना है
खुद को मालिक की नज़रों में
अतिआवश्यक जतलाना है
हम ब्लॉगर भँवरे आते हैं
कर करके कितने ही जुगाड़
हम अपना ब्लॉग सजाते हैं
मन के विचार मानो कलियाँ
जो खिलकर बनतीं पोस्ट फूल
टिप्पणियों को मकरन्द समझ
मँडराते रहते झूल झूल
हम लिखकर पोस्ट बैठ जाते
अब टिप्पणियों का इंतजार
कुछ उधार वापस मिल जाएं
चढ़ जाए कुछ कर्ज का भार
यदि हो आवश्यक काम कहीं
उठते हैं बुझे हुए मन से
आत्मा ब्लॉग पर ही रहती
बाहर जाते हैं बस तन से
अच्छी मिल जाएं या कि बुरी
कुछ मिले प्रशंसा या निन्दा
अवसर हो घमण्ड करने का
या फिर बेशक हों शर्मिन्दा
हम लेखक, और प्रकाशक भी
हम पाठक, हम टिप्पणीकार
हम नामचीन, हम बेनामी
हम ही रोटी, हम ही अचार
हम चर्चित, चर्चाकार हमीं
हम ही कहते, "है अर्ज़ किया"
इरशाद बोलकर हमने ही
फिर वाह वाह का फ़र्ज़ किया
हम झगड़ालू, हम अशान्तिप्रिय
तू तू मैं भी करते हैं
हा हा ठी ठी भी कर लेते
फिर शान्तिपाठ भी पढ़ते हैं
घर पर पत्नी के डण्डे खा
ब्लॉग पर पुरुषवादी बनते
कर दें पतिदेव पिटाई भी
नारीवादी बनकर तनते
अपने बारे में कुछ लिख दो
यह आभासी दुनिया ठहरी
चिल्ला चिल्लाकर खूब कहो
समझो पब्लिक तो है बहरी
साइकिल की दुकान खोली हो
पर बोले रेल चलाते हैं
चाहे पान ही लगाते हों
कहते हथियार बनाते हैं
ये धंधा करें कमीशन का
पर बहुत बड़े व्यवसायी हैं
बूढ़ी अम्मा प्रोफाइल में
लिखती अपने को ताई हैं
लिख दिया कि हैं कलकत्ते में
पर ड्यूटी अपने साथ करें
हर पोस्ट सीरियस लिखते हैं
बच्चों से दो दो हाथ करें
अब कहें कहाँ तक आप कहो
बस अभी काम पर जाना है
खुद को मालिक की नज़रों में
अतिआवश्यक जतलाना है
बुधवार, सितंबर 15, 2010
मर्दों के लिए मर्द बहुतेरे
टाउनशिप में बंदर आया
उछला, कूदा वह लहराया
चढ़ा बालकोनी के ऊपर
जमा हो गए बच्चे भू पर
खीं खीं करके उन्हें डराया
कूद सड़क पर नीचे आया
सिर पर पैर रखे वे दौड़े
लाल हुए उन सबके म्हौंड़े
बंदर फूला नहीं समाया
अहंकार सा उसपर छाया
उसने टाउनशिप था जीता
सिद्ध हुआ हर योद्धा रीता
सबको दौड़ा दौड़ा मारा
सीना फूल हुआ गुब्बारा
उसने निज प्रतिभा पहचानी
विश्वविजय करने की ठानी
बढ़ा विजय मद में हो चूर
एक गाँव था थोड़ी दूर
सोचा इसको भी निपटा दूँ
इन बच्चों को भी दौड़ा लूँ
जैसे ही वह घुसा गाँव में
पीपल के पेड़ की छाँव में
खेल रहे थे बालक वीर
देख उसे हो उठे अधीर
भूल गये सब खेल निराले
दौड़ पड़े सब हो मतवाले
जिसके हाथ लगा जो लेकर
डण्डा, जूता, चप्पल, कंकड़
साथ हुए कुत्ते भी उनके
बंदर चला शोर यह सुनके
कभी पेड़ पर कभी गली में
दौड़ा कभी तेज फिर धीमे
फूली साँस उठा गिर गिरकर
जान बचाने को था तत्पर
सीना फूल हुआ गुब्बारा
उड़ा हवा में घमण्ड सारा
कितने पत्थर पड़े न जाने
गर्मी लगी शरीर तपाने
जैसे तैसे निकला बाहर
भागा ज्यों पीछे हो नाहर
चेहरे सब बच्चों के लाल
सबके किन्तु उठे थे भाल
घुसपैठिया गया था हार
इनको मिला विजय उपहार
बंदर का घमण्ड था गायब
"आज बचाया तूने या रब !"
पूर्ण हुए अरमान न मेरे
मर्दों हेतु मर्द बहुतेरे
उछला, कूदा वह लहराया
चढ़ा बालकोनी के ऊपर
जमा हो गए बच्चे भू पर
खीं खीं करके उन्हें डराया
कूद सड़क पर नीचे आया
सिर पर पैर रखे वे दौड़े
लाल हुए उन सबके म्हौंड़े
बंदर फूला नहीं समाया
अहंकार सा उसपर छाया
उसने टाउनशिप था जीता
सिद्ध हुआ हर योद्धा रीता
सबको दौड़ा दौड़ा मारा
सीना फूल हुआ गुब्बारा
उसने निज प्रतिभा पहचानी
विश्वविजय करने की ठानी
बढ़ा विजय मद में हो चूर
एक गाँव था थोड़ी दूर
सोचा इसको भी निपटा दूँ
इन बच्चों को भी दौड़ा लूँ
जैसे ही वह घुसा गाँव में
पीपल के पेड़ की छाँव में
खेल रहे थे बालक वीर
देख उसे हो उठे अधीर
भूल गये सब खेल निराले
दौड़ पड़े सब हो मतवाले
जिसके हाथ लगा जो लेकर
डण्डा, जूता, चप्पल, कंकड़
साथ हुए कुत्ते भी उनके
बंदर चला शोर यह सुनके
कभी पेड़ पर कभी गली में
दौड़ा कभी तेज फिर धीमे
फूली साँस उठा गिर गिरकर
जान बचाने को था तत्पर
सीना फूल हुआ गुब्बारा
उड़ा हवा में घमण्ड सारा
कितने पत्थर पड़े न जाने
गर्मी लगी शरीर तपाने
जैसे तैसे निकला बाहर
भागा ज्यों पीछे हो नाहर
चेहरे सब बच्चों के लाल
सबके किन्तु उठे थे भाल
घुसपैठिया गया था हार
इनको मिला विजय उपहार
बंदर का घमण्ड था गायब
"आज बचाया तूने या रब !"
पूर्ण हुए अरमान न मेरे
मर्दों हेतु मर्द बहुतेरे
मंगलवार, सितंबर 14, 2010
हिन्दी-डे का सेलीब्रेशन
आज हिन्दी दिवस है । भाषा के बारे में मेरा व्यक्तिगत विचार है कि सारे संसार के लोग एक ही भाषा बोलें । अभी तक यह संभव नहीं हुआ है इसका यह अर्थ कदापि नहीं कि भविष्य में भी यह संभव न होगा । पर यदि सारे संसार की एक ही भाषा होगी तो वह भाग्यशाली भाषा कौन सी होगी ?
क्या हिन्दी वह भाषा हो सकती है ? या अंग्रेजी बाजी मार ले जाएगी या फिर किसी ऐसी नई भाषा का आविष्कार होगा जिसको सीखना सबके लिए बहुत आसान होगा । हो सकता है ऐसा कोई यन्त्र ईजाद हो जाए जिसे कानों पर लगाकर सामने वाला व्यक्ति चाहे जिस भाषा में बोले लेकिन उसका कहा हुआ हमें अपनी मातृभाषा में ही सुनाई देगा । फिर तो सब झंझट ही मिट जाएंगे ।
यह सब अभी बहुत दूर की बातें हैं । फिलहाल तो हमें अपने भारत को ही एक भाषा-भाषी बनाना है और इसके लिए हिन्दी से ही आशाएं हैं । हिन्दी का विस्तार हो । यह सभी सम्पर्क में आने वाली भाषाओं के शब्दों को ग्रहण करे । यह ऐसी नदी हो जो जिसमें सभी धारायें आकर मिल जाएं ।
लेकिन अतिशुद्धतावादियों से डर लगता है । जो हिन्दी से अन्य भाषाओं के शब्दों को बीन बीनकर छाँटते रहते हैं जैसे चावल में से कंकड़ बीन रहे हों । हिन्दी को संस्कृत का पर्याय बना देना चाहते हैं ।
वहीं एक वर्ग ऐसा भी है जो हिन्दी के नाम पर अंग्रेजी की टाँग तोड़ता दिखाई पड़ता है । देखिए:
सुनो जरूरी इनफॉर्मेशन
हिन्दी डे का सेलीब्रेशन
आज मनाएंगे ऑफिस में
इनक्ल्यूडेड डिनर है इसमें
आज बॉस का मूड ठीक है
हम सबका यह लकी वीक है
सब कुलीग को आना होगा
एक सोंग भी गाना होगा
होप, आप सब आ जाएंगे
पार्टी में बस छा जाएंगे
झूमेंगे सब डांस करेंगे
मिस न कभी यह चांस करेंगे
समझो इसको गेट-टुगेदर
ऊपर से अच्छा है वेदर
अच्छा, मैं चलती हूँ, बाय !
ओके, टेक केयर, एंजॉय ॥
क्या हिन्दी वह भाषा हो सकती है ? या अंग्रेजी बाजी मार ले जाएगी या फिर किसी ऐसी नई भाषा का आविष्कार होगा जिसको सीखना सबके लिए बहुत आसान होगा । हो सकता है ऐसा कोई यन्त्र ईजाद हो जाए जिसे कानों पर लगाकर सामने वाला व्यक्ति चाहे जिस भाषा में बोले लेकिन उसका कहा हुआ हमें अपनी मातृभाषा में ही सुनाई देगा । फिर तो सब झंझट ही मिट जाएंगे ।
यह सब अभी बहुत दूर की बातें हैं । फिलहाल तो हमें अपने भारत को ही एक भाषा-भाषी बनाना है और इसके लिए हिन्दी से ही आशाएं हैं । हिन्दी का विस्तार हो । यह सभी सम्पर्क में आने वाली भाषाओं के शब्दों को ग्रहण करे । यह ऐसी नदी हो जो जिसमें सभी धारायें आकर मिल जाएं ।
लेकिन अतिशुद्धतावादियों से डर लगता है । जो हिन्दी से अन्य भाषाओं के शब्दों को बीन बीनकर छाँटते रहते हैं जैसे चावल में से कंकड़ बीन रहे हों । हिन्दी को संस्कृत का पर्याय बना देना चाहते हैं ।
वहीं एक वर्ग ऐसा भी है जो हिन्दी के नाम पर अंग्रेजी की टाँग तोड़ता दिखाई पड़ता है । देखिए:
सुनो जरूरी इनफॉर्मेशन
हिन्दी डे का सेलीब्रेशन
आज मनाएंगे ऑफिस में
इनक्ल्यूडेड डिनर है इसमें
आज बॉस का मूड ठीक है
हम सबका यह लकी वीक है
सब कुलीग को आना होगा
एक सोंग भी गाना होगा
होप, आप सब आ जाएंगे
पार्टी में बस छा जाएंगे
झूमेंगे सब डांस करेंगे
मिस न कभी यह चांस करेंगे
समझो इसको गेट-टुगेदर
ऊपर से अच्छा है वेदर
अच्छा, मैं चलती हूँ, बाय !
ओके, टेक केयर, एंजॉय ॥
रविवार, सितंबर 12, 2010
जनता के सेवक
इस कलयुग में जनसेवा का अवसर बड़े भाग्यवान लोगों को मिलता है । जनता के नखरे ही निराले हैं । नेता बेचारे सेवा का पुण्य पाने को तरसते रहते हैं । जनता देवी हैं कि किसी एक सेवक की सेवा से इनको संतुष्टि ही मिलती । माना कि एक सेवक से सेवा कराते कराते थोड़ी बोरियत होने लगती होगी । लेकिन कुछ तो सही गलत का विचार करना चाहिए । ऐसा भी क्या हुआ कि आप सबको एक ही साथ बुला भेजती हो । कम से कम पाँच पाँच साल तो एक सेवक को मौका मिलना चाहिए कि नहीं । लेकिन जनता देवी को तो सबकी सेवा चाहिए । शायद इन्हें खण्डित जनादेश देकर सब सेवकों को आपस में सेवा के लिए झगड़ते देखकर अपने पर गर्व करने में थोड़ी और आसानी होती होगी ।
बेचारे सेवक अभी चुनाव की थकान भी उतार पाते कि फिर से अपने प्रतिद्वन्दी सेवकों से लड़ना पड़ता है । ऐसे लड़ झगड़कर मान लो सेवा का आधिकार हासिल कर भी लिया तो क्या उतनी अच्छी तरह जनता देवी की सेवा कर पाएंगे जितनी फ्रेश मूड में होने पर कर पाते ।
चतुर व्यक्ति वही है जो दूसरों की गलतियों से ही सीख ले । ऐसे ही आजकल के जन सेवक हैं । इन्होंने अपने पूर्ववर्तियों को लड़ाई झगड़े के कारण नुकसान उठाते देखा है इसलिए ये उस गलती को दोहराना नहीं चाहते । मिल बैठकर सेवा अधिकार को बाँट लेते हैं । जनता देवी ठगी सी रह जाती है । और ये उसकी खूब सेवा कर जाते हैं ।
समझ नहीं आता इन्हें जनता के सेवक कहें या नाथ ?
चलते-चलते
अवसर फिर से लग गया, जनसेवा का हाथ
अनाथ जनता को इधर, नया मिल गया नाथ
नया मिल गया नाथ, भाग्य सोये जागे हैं
होन लगे शुभ शकुन, अपशकुन सब भागे हैं
विवेक सिंह यों कहें, बनी है बढ़िया जोड़ी
खड़े हुए हैं साथ आज फिर अन्धे-कोढ़ी
बेचारे सेवक अभी चुनाव की थकान भी उतार पाते कि फिर से अपने प्रतिद्वन्दी सेवकों से लड़ना पड़ता है । ऐसे लड़ झगड़कर मान लो सेवा का आधिकार हासिल कर भी लिया तो क्या उतनी अच्छी तरह जनता देवी की सेवा कर पाएंगे जितनी फ्रेश मूड में होने पर कर पाते ।
चतुर व्यक्ति वही है जो दूसरों की गलतियों से ही सीख ले । ऐसे ही आजकल के जन सेवक हैं । इन्होंने अपने पूर्ववर्तियों को लड़ाई झगड़े के कारण नुकसान उठाते देखा है इसलिए ये उस गलती को दोहराना नहीं चाहते । मिल बैठकर सेवा अधिकार को बाँट लेते हैं । जनता देवी ठगी सी रह जाती है । और ये उसकी खूब सेवा कर जाते हैं ।
समझ नहीं आता इन्हें जनता के सेवक कहें या नाथ ?
चलते-चलते
अवसर फिर से लग गया, जनसेवा का हाथ
अनाथ जनता को इधर, नया मिल गया नाथ
नया मिल गया नाथ, भाग्य सोये जागे हैं
होन लगे शुभ शकुन, अपशकुन सब भागे हैं
विवेक सिंह यों कहें, बनी है बढ़िया जोड़ी
खड़े हुए हैं साथ आज फिर अन्धे-कोढ़ी
शनिवार, सितंबर 11, 2010
अलग है फुरसतिया की बात ( बड्डे वीक विशेष )
अलग है फुरसतिया की बात
इनके साथ हमेशा चलती
मौजों की बारात
अलग है फुरसतिया की बात
लिखते ब्लॉग जबरिया, लेकिन
ब्लॉगिंग है सूनी इनके बिन
ये न लिखें तो कटते गिन गिन
हफ्ते के दिन सात
अलग है फुरसतिया की बात
लम्बे लम्बे लेख छापते
उदासियों को जला तापते
इनको पा सामने काँपते
उलझन के हालात
अलग है फुरसतिया की बात
मित्रों की कर टाँग खिंचाई
खूब मित्रता सदा निभाई
हा हा ठी ठी से दिलवाई
खुशियों की सौगात
अलग है फुरसतिया की बात
कभी कभी झगड़े निपटाते
सूक्ति शायरी खूब सुनाते
कभी अचानक से कर जाते
दोहों की बरसात
अलग है फुरसतिया की बात
होंगे ये सैंतालिस साला
बड्डे है बस आने वाला
रूठे तो रूठे गोपाला
दिया सत्य का साथ
अलग है फुरसतिया की बात
ब्लॉगिंग में आदर्श हमारे
अनूप शुक्ल कानपुर बारे
जानें सभी बिलागर सारे
ज्ञात और अज्ञात
अलग है फुरसतिया की बात
मिलें कभी आमने सामने
अवसर कभी न दिया राम ने
कहा न हैप्पी बड्डे हमने
कभी मिलाकर हाथ
अलग है फुरसतिया की बात
इनके साथ हमेशा चलती
मौजों की बारात
अलग है फुरसतिया की बात
( पोस्ट उत्साह में समय से पहले छप गई थी । सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी ने ध्यान दिलाया तो हमने बड्डे वीक मनाने की सोच ली है )
शुक्रवार, सितंबर 10, 2010
ईमानदारी का प्रमाणपत्र
एक बार किसी राज्य में भ्रष्टाचार बहुत बढ़ गया था । बात राजा के कानों तक पहुँची । राजा ने मंत्रियों से विचार विमर्श किया कि क्या कदम उठाया जाय । मंत्रियों ने सर्वसम्मति से सलाह दी कि एक आयोग बिठाया जाय जो यह पता लगाये कि भ्रष्टाचार अपनी जड़ें कितनी गहरी जमा चुका है ? तदनुसार कदम उठाए जाएं ।
आयोग का गठन हो गया । रिपोर्ट भी आ गयी । रिपोर्ट थी कि राज्य में तीन में से दो व्यक्ति भ्रष्ट हैं और हर तीसरा व्यक्ति ईमानदार है । राजा को बड़ी चिन्ता हुई । उसने फिर से मंत्रियों को पूछा कि भ्रष्टाचार को कम करने के लिए क्या कदम उठाया जाय ? सलाह मिली कि चूँकि ईमानदार लोग अल्पसंख्यक हो गए हैं अत: उन्हें आरक्षण दे दिया जाय । तय हुआ कि ईमानदार लोगों को जिला मुख्यालयों से ईमानदारी का प्रमाणपत्र लेना होगा । तभी वे आरक्षण के हकदार होंगे । राज्य भर में यह घोषणा करवा दी गयी ।
निर्धारित दिन जिला मुख्यालय पर बने बूथ के सामने सुबह से ही लम्बी लाइन लग गयी । प्रमाणपत्र देने वाले बाबू को पता था कि जाँच रिपोर्ट के अनुसार हर तीसरा आदमी ईमानदार है । उसने प्रमाणपत्र देना आरम्भ किया तो पहले दो व्यक्तियों को भगा दिया और तीसरे को ईमानदारी का प्रमाणपत्र थमा दिया । यही क्रम जारी रहा । जिन लोगों को भगाता वे फिर से लाइन में पीछे जाकर खड़े हो जाते । बड़ी भीड़ को बाबू ने शाम होने से पहले ही निपटा दिया । अन्त में केवल दो ही लोग बचे जिन्हें ईमान दारी का प्रमाणपत्र न मिल सका । बाबू उनसे बोला यार तुम्हें कहीं देखा है । मेरा परिचित तो भ्रष्ट नहीं हो सकता । इस तरह उनको भी ईमानदारी का प्रमाणपत्र मिल गया ।
उस जिले को पूर्ण ईमानदार जिला होने की बधाई स्वयं राजा ने दी और उस बाबू को सबसे परिश्रमी बाबू होने का अवार्ड भी !
आयोग का गठन हो गया । रिपोर्ट भी आ गयी । रिपोर्ट थी कि राज्य में तीन में से दो व्यक्ति भ्रष्ट हैं और हर तीसरा व्यक्ति ईमानदार है । राजा को बड़ी चिन्ता हुई । उसने फिर से मंत्रियों को पूछा कि भ्रष्टाचार को कम करने के लिए क्या कदम उठाया जाय ? सलाह मिली कि चूँकि ईमानदार लोग अल्पसंख्यक हो गए हैं अत: उन्हें आरक्षण दे दिया जाय । तय हुआ कि ईमानदार लोगों को जिला मुख्यालयों से ईमानदारी का प्रमाणपत्र लेना होगा । तभी वे आरक्षण के हकदार होंगे । राज्य भर में यह घोषणा करवा दी गयी ।
निर्धारित दिन जिला मुख्यालय पर बने बूथ के सामने सुबह से ही लम्बी लाइन लग गयी । प्रमाणपत्र देने वाले बाबू को पता था कि जाँच रिपोर्ट के अनुसार हर तीसरा आदमी ईमानदार है । उसने प्रमाणपत्र देना आरम्भ किया तो पहले दो व्यक्तियों को भगा दिया और तीसरे को ईमानदारी का प्रमाणपत्र थमा दिया । यही क्रम जारी रहा । जिन लोगों को भगाता वे फिर से लाइन में पीछे जाकर खड़े हो जाते । बड़ी भीड़ को बाबू ने शाम होने से पहले ही निपटा दिया । अन्त में केवल दो ही लोग बचे जिन्हें ईमान दारी का प्रमाणपत्र न मिल सका । बाबू उनसे बोला यार तुम्हें कहीं देखा है । मेरा परिचित तो भ्रष्ट नहीं हो सकता । इस तरह उनको भी ईमानदारी का प्रमाणपत्र मिल गया ।
उस जिले को पूर्ण ईमानदार जिला होने की बधाई स्वयं राजा ने दी और उस बाबू को सबसे परिश्रमी बाबू होने का अवार्ड भी !
गुरुवार, सितंबर 09, 2010
केन्द्रीय सरकता आयोग पर निबंध
सरकता आयोग
दुनिया में हर देश की तरक्की के लिए उसे आगे सरकाना बेहद जरूरी होता है । इसीलिए प्रत्येक देश में किसी न किसी रूप में सरकता आयोग मौजूद रहता है । जिन देशों में सरकता आयोग नहीं होता वे विकास की दौड़ में पीछे रह जाते हैं ।
भारत में सरकता आयोग की स्थापना संविधान के द्वारा की गयी है । भारतीय संविधान की प्रस्तावना में लिखा हुआ है कि, " भारत अर्थात् इण्डिया, संघों का राज्य होगा । इसका एक सरकता आयोग होगा । जो देश को आगे सरकाने में सरकार की मदद करेगा । "
हमारे देश में केन्द्रीय सरकता आयोग के अतिरिक्त राज्यों में राज्य सरकता आयोग और जिलों में जिला सरकता आयोगों की स्थापना की गयी है । देश की एकता और अखण्डता को बनाये रखने के लिए आवश्यक है कि सारा देश एक साथ विकास करे । इसीलिए देश में सरकता आयोगों का जाल बिछाना उचित समझा गया ।
केन्द्रीय सरकता आयोग का अध्यक्ष मुख्य सरकता आयुक्त होता है जिसकी नियुक्ति प्रधानमंत्री अपनी पार्टी के अध्यक्ष की सलाह से करता है । इसके बाद केन्द्रीय तथा राज्य व जिला आयोगों में अन्य सदस्यों और कर्मचारियों को सरकाने का काम मुख्य सरकता आयुक्त स्वयं कर लेते हैं ।
आमतौर पर किसी व्यक्ति को सरकता आयोग का सदस्य होने के लिए निम्नलिखित योग्यताओं का पालन करना पड़ता है :
१. वह भारत का नागरिक हो ।
२. वह पागल दिवालिया या कोढ़ी न हो ।
३. उसे सरकने में महारथ हासिल हो ।
देश में कहीं भी सरकने से सम्बंधित किसी भी समस्या के निदान हेतु नजदीकी सरकता आयोग में शिकायत दर्ज करायी जा सकती है । मसलन :
यदि किसी बहू का पल्लू सरकने में उसकी सास बाधक हो रही है तो बहू सरकता आयोग की सेवाएं ले सकती है ।
बस में तीन वाली सीट पर बैठे यात्री यदि चौथी सवारी बिठाने के लिए सरकने में आनाकानी करते हैं तो बैठने का इच्छुक खड़ा हुआ यात्री सरकता आयोग की सेवाएं ले सकता है ।
भ्रष्टाचारी बाबू यदि पर्याप्त रिश्वत लेने के बावजूद किसी व्यक्तिगत खुन्नस के कारण फाइल को आगे नहीं सरका रहा है तो पीड़ित व्यक्ति सरकता आयोग की सहायता ले सकता है ।
कोई जाँच आयोग निर्धारित अवधि में जाँच न पूरी कर पाने पर अपना कार्यकाल आगे सरकाने के लिए सरकता आयोग में अपील कर सकता है ।
यदि किसी करदाता को कर जमा करने में अन्तिम तिथि निकल गयी हो तो वह भी सरकता आयोग से कहकर अन्तिम तिथि को आगे बढ़वा सकता है । आदि ।
जिला सरकता आयोग से लेकर केन्द्रीय सरकता आयोग तक में लाखों लोगों को रोजगार मिला हुआ है । आयोग के परिसर में संविधान में संशोधन करके चलने या दौड़ने आदि पर पाबंदी लगाकर केवल सरकने को ही वैध माना गया है । इससे यहाँ आने वाले शिकायत्कर्ताओं और यहाँ के कर्मचारियों के पेण्ट जल्दी घिस जाते हैं और इस प्रकार देश का वस्त्र उद्योग आगे सरकता रहता है ।
सरकता आयोग के बारे में उल्लेखनीय है कि ठंडे आयोग की सिफारिशों को मद्दे नज़र रखते हुए रेंगता आयोग को भंग करके उसके स्थान पर इसकी स्थापना की गयी है । ताकि अतिपिछड़े वर्गों को भी साथ लिया जा सके जो रेंगने में असमर्थ थे ।
सरकता आयोग का महत्व इसी बात से पता चल जाता है कि सरकार को सरकार इसीलिए कहा जाता है क्योंकि सरकता आयोग सरकार के प्रति उत्तरदायी होता है ।
भारत के सरकता आयोग का नारा है " सरकें और सरकाएं, देश के आगे बढ़ाएं ।"
जय हिन्द !
बुधवार, सितंबर 08, 2010
आधुनिक राम की करतूत
अयोध्या में खुदाई शुरू हुई । राम को ढूँढ़ना था । लगभग सारी अयोध्या खोद डाली लेकिन राम नहीं मिले । खोदने वालों को राम को ढूँढ़ने में कोई खास दिलचस्पी न थी । उन्हें शायद पहले से पता था कि राम नहीं मिलेंगे । उनकी दिलचस्पी इस बात में ज्यादा थी कि किस तरह अधिक से अधिक क्षेत्र में खुदाई कर दी जाय जिससे खुदाई का भुगतान होते ही मुकेश अम्बानी से टक्कर लेने लगें । इसी चक्कर में वे दिनरात एक करके खुदाई करते जा रहे थे । अयोध्या में राम बरामद नहीं हुए तो वे आसपास के इलाकों का अतिक्रमण करते हुए खुदाई करने लगे । इसी तरह वे खुदाई करते करते बनारस पहुँच गए । बनारस में एक जगह उन्हें एक बोर्ड लगा हुआ दिखाई पड़ा । उस पर लिखा हुआ था "आधुनिक राम" । वे उसी तरफ़ चल पड़े ।
देखा कि राम को साथ दो स्त्रियाँ खड़ी हैं ।
एक तो सीता माता होंगी । पर दूसरी कौन है ? इस पर लक्ष्मण जी भी कहीं दिखाई नहीं दे रहे । हो सकता है लकड़ियाँ इकट्ठी करने गए हों । लेकिन यह दो स्त्रियों का क्या मतलब है ? और पास पहुँचे तो पता चला कि एक स्त्री की नाक कटी हुई है । वे लोग समझ गए कि सूर्पनखा की नाक काटने वाला सीन चल रहा है ।
उनका एक साथी भावुक होकर सीता मैया के चरणों में गिर गया और बोला, " माता ! आपको सूर्पनखा ने कोई चोट तो नहीं पहुँचाई ?"
लेकिन प्रश्न पूछते ही तथाकथित सीता माता ने उसे एक जोरदार कण्टाप जड़ दिया और बोली, "बेवकूफ ! मैं सूर्पनखा हूँ । आधुनिक युग में नाक सीता की कटती है, सूर्पनखा की नहीं । सूर्पनखा की नाक तो तभी कटेगी जब वह राम को ब्लैकमेल करने लगे ।"
खुदाई वाले चुपचाप अपने फावड़े अदि उठाकर जिधर से आए थे उधर ही चले गए ।
देखा कि राम को साथ दो स्त्रियाँ खड़ी हैं ।
एक तो सीता माता होंगी । पर दूसरी कौन है ? इस पर लक्ष्मण जी भी कहीं दिखाई नहीं दे रहे । हो सकता है लकड़ियाँ इकट्ठी करने गए हों । लेकिन यह दो स्त्रियों का क्या मतलब है ? और पास पहुँचे तो पता चला कि एक स्त्री की नाक कटी हुई है । वे लोग समझ गए कि सूर्पनखा की नाक काटने वाला सीन चल रहा है ।
उनका एक साथी भावुक होकर सीता मैया के चरणों में गिर गया और बोला, " माता ! आपको सूर्पनखा ने कोई चोट तो नहीं पहुँचाई ?"
लेकिन प्रश्न पूछते ही तथाकथित सीता माता ने उसे एक जोरदार कण्टाप जड़ दिया और बोली, "बेवकूफ ! मैं सूर्पनखा हूँ । आधुनिक युग में नाक सीता की कटती है, सूर्पनखा की नहीं । सूर्पनखा की नाक तो तभी कटेगी जब वह राम को ब्लैकमेल करने लगे ।"
खुदाई वाले चुपचाप अपने फावड़े अदि उठाकर जिधर से आए थे उधर ही चले गए ।
मंगलवार, सितंबर 07, 2010
भारत की महानता खतरे में
मुझे अच्छी तरह पता है कि मेरा भारत महान है । अगर भारत महान न होता तो कितने ही ट्रक वाले अपने ट्रकों के पीछे यूँ ही तो नहीं लिखवा लेते " मेरा भारत महान" । हमें सिखाया गया है कि चूँकि हमारा भारत महान है इसलिए हमें इस पर नाज होना चाहिए । इतना नाज होना चाहिए कि भारत नाजमय हो जाए ।
हमने ऐसा ही किया । अपने भारत पर बहुत नाज किया । इतना नाज किया कि अनाज कम पड़ गया । हम भूखों मरने लगे । भूखा आदमी नाज फाज सब भूल जाता है । हम भी भूल गए । विदेशों से अनाज माँगने चले गए । पर नहीं मिला । विदेश वाले हमसे भी पहले मर गए । रहीम जी ने ठीक ही कहा था ।
हरितक्रान्ति ने तो अनाज की पैदावार को इतना बढ़ा दिया कि नाज के विलुप्त प्रजातियों की लिस्ट में शामिल होने का खतरा बढ़ गया । यह हरित क्रान्ति अवश्य ही आई एस आई की हरकत रही होगी ।
अनाज को सरकार छुपाकर रखने लगी ताकि नाज अनाज की अपेक्षा ज्यादा रहे । और भारत महान बना रहे । लेकिन विदेशी साजिशों के फलस्वरूप अनाज की पैदावार इतनी बढ़ी कि नाज का सेंसेक्स उठाने के लिए अनाज को सड़ाने पर मजबूर होना पड़ा ।
अब फिर सुप्रीम कोर्ट जी अनाज को गरीब जनता में बाँटने को बोल रहे हैं । इससे बड़ी मुश्किल हो रही है । देश में गरीब ही तो हैं जिन्हें देश पर नाज है अगर अनाज गरीबों में ही बाँट दिया जाएगा तो नाज की विलुप्ति का खतरा एक बार फिर मँडराने लगेगा ।
नाज न होगा तो फिर भारत के महान होने का भला क्या फायदा । भारत कह देगा कि, "जाओ जी मैं नहीं बनता महान, जब मेरे ऊपर किसी को नाज ही नहीं है ।"
और इतने सारे ट्रकों पर "मेरा भारत महान" लिखा हुआ है उसका क्या ? सब मिटवाकर फिर से कुछ नया लिखवाना पड़ेगा जैसे, "दुल्हन ही दहेज है" , "हम दो हमारे दो" आदि । कितना पेन्टिंग का खर्चा आएगा । पूरी अर्थव्यस्था पहले ही मंदी की चपेट में है । फिर तो शायद डूब ही जाए ।
इसलिए श्री सुप्रीम कोर्ट जी कृपया अपनी ये बच्चों वाली जिद छोड़ दें । और हमें आराम से रहने दें । आप तो सुप्रीम कोर्ट हैं । कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा । लेकिन बेचारे भारत की महानता जाती रहेगी ।
हमने ऐसा ही किया । अपने भारत पर बहुत नाज किया । इतना नाज किया कि अनाज कम पड़ गया । हम भूखों मरने लगे । भूखा आदमी नाज फाज सब भूल जाता है । हम भी भूल गए । विदेशों से अनाज माँगने चले गए । पर नहीं मिला । विदेश वाले हमसे भी पहले मर गए । रहीम जी ने ठीक ही कहा था ।
रहिमन वे नर मर चुके जो कहुँ माँगन जाइँहारे को हरि नाम की तर्ज पर हमारे तत्कालीन प्रधानमंत्री ने हफ़्ते में एक दिन व्रत रखने को कह दिया । अनाज बचने लगा । नाज अपेक्षाकृत और भी कम हो गया ।
उनसे पहले वे मुए जिन मुख निकसति नाहिं
हरितक्रान्ति ने तो अनाज की पैदावार को इतना बढ़ा दिया कि नाज के विलुप्त प्रजातियों की लिस्ट में शामिल होने का खतरा बढ़ गया । यह हरित क्रान्ति अवश्य ही आई एस आई की हरकत रही होगी ।
अनाज को सरकार छुपाकर रखने लगी ताकि नाज अनाज की अपेक्षा ज्यादा रहे । और भारत महान बना रहे । लेकिन विदेशी साजिशों के फलस्वरूप अनाज की पैदावार इतनी बढ़ी कि नाज का सेंसेक्स उठाने के लिए अनाज को सड़ाने पर मजबूर होना पड़ा ।
अब फिर सुप्रीम कोर्ट जी अनाज को गरीब जनता में बाँटने को बोल रहे हैं । इससे बड़ी मुश्किल हो रही है । देश में गरीब ही तो हैं जिन्हें देश पर नाज है अगर अनाज गरीबों में ही बाँट दिया जाएगा तो नाज की विलुप्ति का खतरा एक बार फिर मँडराने लगेगा ।
नाज न होगा तो फिर भारत के महान होने का भला क्या फायदा । भारत कह देगा कि, "जाओ जी मैं नहीं बनता महान, जब मेरे ऊपर किसी को नाज ही नहीं है ।"
और इतने सारे ट्रकों पर "मेरा भारत महान" लिखा हुआ है उसका क्या ? सब मिटवाकर फिर से कुछ नया लिखवाना पड़ेगा जैसे, "दुल्हन ही दहेज है" , "हम दो हमारे दो" आदि । कितना पेन्टिंग का खर्चा आएगा । पूरी अर्थव्यस्था पहले ही मंदी की चपेट में है । फिर तो शायद डूब ही जाए ।
इसलिए श्री सुप्रीम कोर्ट जी कृपया अपनी ये बच्चों वाली जिद छोड़ दें । और हमें आराम से रहने दें । आप तो सुप्रीम कोर्ट हैं । कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा । लेकिन बेचारे भारत की महानता जाती रहेगी ।
सोमवार, सितंबर 06, 2010
63 वर्ष कम नहीं होते
आजकल नारी के अधिकारों की दुहाई देने वालों की कोई कमी नहीं है । बहुत बातें की जाती हैं नारी उद्धार को लेकर, नारियों के लिए आरक्षण और न जाने क्या क्या । किन्तु अभी तक नारी को वास्तव में पुरुष की बराबरी करने लायक सैद्धान्ति रूप से भी नहीं माना गया है ।
पुराने जमाने में पति स्वामी का पर्याय था और पत्नी सेविका की मूर्ति । आज दावा किया जाता है कि पति और पत्नी में केवल पुर्लिंग और स्त्रीलिंग का भेद है । लेकिन यह सच नहीं है पत्नी होना आज भी सम्मान की बात नहीं है । आज भी पति शब्द स्वामी का पर्याय है । जबकि पत्नी शब्द का अर्थ अभी भी स्वामिनी नहीं होता । इसीलिए तो जैसे किसी पुरुष के राष्ट्राध्यक्ष बनने पर उसे राष्ट्रपति कहा जाता है वैसे एक स्त्री के राष्ट्राध्यक्ष बनने पर उसे राष्ट्रपत्नी नहीं कहा जाता ।
जिस दिन ऐसा होगा तब पुरुष और स्त्री सही अर्थों में बराबर कहलाएंगे ।
यही हाल जातिवाद के बारे में है । जातियों में विभाजन की बात तो समझ में आती है । पर किसी जाति को उच्च जाति माना जाता है और उस जाति के व्यक्ति को जाति सूचक शब्दों से बुलाए जाने में गर्व महसूस होता है । जबकि कुछ जातियों को निम्न जातियों का तमगा मिला हुआ है और बाकायदा कानून हैं कि उस जाति वाले व्यक्ति को जाति सूचक शब्दों से सम्बोधित नहीं किया जा सकता । मजे की बात तो यह है कि जिस प्रकार हम अपना धर्म बदल सकते हैं उसी तरह हम अपनी जाति नहीं बदल सकते । निम्न जाति वाले को नीच कहलाने से छुटकारा तभी मिल सकता है जब वह अपना धर्म ही बदल ले । वास्तव में तो तब भी नहीं मिलता ।
जब तक किसी को अपनी पहचान बताने में शर्म महसूस होती रहेगी तब तक कैसे हम एक बराबरी वाले समाज की रचना कर पाएंगे भला ?
इस बारे में हमारे नीति नियन्ताओं की कोई स्पष्ट नीति है ही नहीं । बल्कि वे तो समाज में ऊँच नीच और स्त्री पुरुष के भेदभाव को बनाए रखना ही चाहते हैं । अन्यथा जाति आधारित जनगणना की माँग न की जाती और अब तक आरक्षण भी आर्थिक आधार पर लागू हो गया होता । 63 वर्ष कम नहीं होते ।
पुराने जमाने में पति स्वामी का पर्याय था और पत्नी सेविका की मूर्ति । आज दावा किया जाता है कि पति और पत्नी में केवल पुर्लिंग और स्त्रीलिंग का भेद है । लेकिन यह सच नहीं है पत्नी होना आज भी सम्मान की बात नहीं है । आज भी पति शब्द स्वामी का पर्याय है । जबकि पत्नी शब्द का अर्थ अभी भी स्वामिनी नहीं होता । इसीलिए तो जैसे किसी पुरुष के राष्ट्राध्यक्ष बनने पर उसे राष्ट्रपति कहा जाता है वैसे एक स्त्री के राष्ट्राध्यक्ष बनने पर उसे राष्ट्रपत्नी नहीं कहा जाता ।
जिस दिन ऐसा होगा तब पुरुष और स्त्री सही अर्थों में बराबर कहलाएंगे ।
यही हाल जातिवाद के बारे में है । जातियों में विभाजन की बात तो समझ में आती है । पर किसी जाति को उच्च जाति माना जाता है और उस जाति के व्यक्ति को जाति सूचक शब्दों से बुलाए जाने में गर्व महसूस होता है । जबकि कुछ जातियों को निम्न जातियों का तमगा मिला हुआ है और बाकायदा कानून हैं कि उस जाति वाले व्यक्ति को जाति सूचक शब्दों से सम्बोधित नहीं किया जा सकता । मजे की बात तो यह है कि जिस प्रकार हम अपना धर्म बदल सकते हैं उसी तरह हम अपनी जाति नहीं बदल सकते । निम्न जाति वाले को नीच कहलाने से छुटकारा तभी मिल सकता है जब वह अपना धर्म ही बदल ले । वास्तव में तो तब भी नहीं मिलता ।
जब तक किसी को अपनी पहचान बताने में शर्म महसूस होती रहेगी तब तक कैसे हम एक बराबरी वाले समाज की रचना कर पाएंगे भला ?
इस बारे में हमारे नीति नियन्ताओं की कोई स्पष्ट नीति है ही नहीं । बल्कि वे तो समाज में ऊँच नीच और स्त्री पुरुष के भेदभाव को बनाए रखना ही चाहते हैं । अन्यथा जाति आधारित जनगणना की माँग न की जाती और अब तक आरक्षण भी आर्थिक आधार पर लागू हो गया होता । 63 वर्ष कम नहीं होते ।
रविवार, सितंबर 05, 2010
वैसे तो चलता इसके बिन
तुम तेजी से बदल रहे हो
सच पूछो तो फिसल रहे हो
रोको इस फिसलन को भाई
इस सलाह में नहीं बुराई
हमसे दूरी बना रहे हो
मेल उसी से बढ़ा रहे हो
जिससे हमें सख्त नफ़रत है
पड़ी तुम्हें उसकी आदत है
उसके मुँह से मुँह चिपकाए
किन्तु न तुम बिल्कुल शरमाए
हमें पता है वह कैसी है
बिल्कुल बहेलिया जैसी है
पहले जाल बिछा देती है
अनजान को पटा लेती है
तुमसे पहले बहुत फँसे हैं
इस नागिन ने बहुत डसे हैं
कभी झुण्ड में कभी अकेले
तनहाई हो या हों मेले
यह लोगों के साथ मिलेगी
सबके लब पर मुँह रख देगी
शर्म-ओ-हया न इसको आती
सबसे खुले आम बतियाती
सज्जन लोग देखकर जलते
बेचारे मुँह फेर निकलते
किन्तु मुई यह जिनको प्रिय हो
लगा इसी में उनका हिय हो
उनको लाज नहीं आती है
यह भी तनिक न शरमाती है
इसने लाखों घर फूँके हैं
घर में जो बच्चे भूखे हैं
उन्हें भूल इसको अपनाना
गलत नहीं क्या जरा बताना
किन्तु लोग ऐसा करते हैं
जैसा करते हैं भरते हैं
टीबी, दमा, कैंसर, छाले
दिल की भी बीमारी पाले
बेचारे पछताते रहते
अन्त समय में सबसे कहते
"मैंने बहुत बड़ी गलती की
जब सिगरेट शुरू में पी थी
भाई कोई इसे न पीना
लम्बी उम्र अगर है जीना"
बुरी लगें यदि बातें तुमको
शिष्य माफ़ कर देना हमको
वैसे तो चलता इसके बिन
शिक्षक दिवस आज है लेकिन
इसीलिए तुमको समझाया
हमने गुरु का फ़र्ज़ निभाया
सच पूछो तो फिसल रहे हो
रोको इस फिसलन को भाई
इस सलाह में नहीं बुराई
हमसे दूरी बना रहे हो
मेल उसी से बढ़ा रहे हो
जिससे हमें सख्त नफ़रत है
पड़ी तुम्हें उसकी आदत है
उसके मुँह से मुँह चिपकाए
किन्तु न तुम बिल्कुल शरमाए
हमें पता है वह कैसी है
बिल्कुल बहेलिया जैसी है
पहले जाल बिछा देती है
अनजान को पटा लेती है
तुमसे पहले बहुत फँसे हैं
इस नागिन ने बहुत डसे हैं
कभी झुण्ड में कभी अकेले
तनहाई हो या हों मेले
यह लोगों के साथ मिलेगी
सबके लब पर मुँह रख देगी
शर्म-ओ-हया न इसको आती
सबसे खुले आम बतियाती
सज्जन लोग देखकर जलते
बेचारे मुँह फेर निकलते
किन्तु मुई यह जिनको प्रिय हो
लगा इसी में उनका हिय हो
उनको लाज नहीं आती है
यह भी तनिक न शरमाती है
इसने लाखों घर फूँके हैं
घर में जो बच्चे भूखे हैं
उन्हें भूल इसको अपनाना
गलत नहीं क्या जरा बताना
किन्तु लोग ऐसा करते हैं
जैसा करते हैं भरते हैं
टीबी, दमा, कैंसर, छाले
दिल की भी बीमारी पाले
बेचारे पछताते रहते
अन्त समय में सबसे कहते
"मैंने बहुत बड़ी गलती की
जब सिगरेट शुरू में पी थी
भाई कोई इसे न पीना
लम्बी उम्र अगर है जीना"
बुरी लगें यदि बातें तुमको
शिष्य माफ़ कर देना हमको
वैसे तो चलता इसके बिन
शिक्षक दिवस आज है लेकिन
इसीलिए तुमको समझाया
हमने गुरु का फ़र्ज़ निभाया
शनिवार, सितंबर 04, 2010
दीजिए जरा इधर भी कान
पिता ने लाखों किये प्रयास
न देखे बाहर का संसार
किन्तु विधि को जो था मंजूर
धरा पर होता वही जरूर
हुआ भी ; निकले राजकुमार
देखने बाहर का संसार
सब तरफ खुशियों का माहौल
झूठ की जय सत्य का मखौल
टिक सका अधिक न किन्तु असत्य
सामने आना ही था सत्य
हुआ उनको गहरा संताप
सभी कुछ छोड़ गए चुपचाप
विश्व की खातिर झेले कष्ट
हो सका तब जाकर स्पष्ट
दुखों का कारण केवल मोह
उपजता आसक्ति से बिछोह
दिया जनता को यह उपदेश
शांति फैलाई देश-विदेश
आज वे स्वयं तो नहीं पास
किन्तु तुमसे सबको है आस
पुत्र तुम यशोधरा के नहीं
हो चला सबको लेकिन यकीं
नाम राहुल न तुम्हारा व्यर्थ
शब्द गांधी का भी है अर्थ
इधर आतंकवाद से युद्ध
उधर नक्सलवादी अति क्रुद्ध
गरीबी हो या भ्रष्टाचार
आम जन ही बेबस लाचार
अपाहिज नेताओं का लक्ष्य
स्वार्थ ही बना परोक्ष-प्रत्यक्ष
ऐंठते सीमाओं के कान
बढ़ रहे चीन-ओ-पाकिस्तान
लगाई थी जिनसे उम्मीद
सो रहे हैं सब सुख की नींद
दीजिए जरा इधर भी कान
सँभालें कृपया जल्द कमान
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