वैसे तो आपके ठीक सामने जो व्यक्ति कम्प्यूटर और चश्मे के पीछे से आपको लगातार घूरे जा रहा है, उसे आप पहचानते ही होंगे . फिर भी यदि किसी कारणवश आप इन्हें न पहचान सके हों तो हम शंका उठने से पहले ही समाधान कर देते हैं . डरिये मत ये सिर्फ दिखते खतरनाक हैं . ये अनूप शुक्ल हैं . आज इनका हैप्पी बड्डे है . इस अवसर पर इनके जन्म के उपलक्ष्य में जितेन्द्र चौधरी का एक
पुराना लेख हम लाए हैं । लेख 2006 में आज ही के दिन लिखा गया होगा . पर आज भी प्रासंगिक है . आप जैसा है वैसा ही पढ़कर हमें वापस कर देना . हम जीतू जी को लौटा देंगे . खराब मत करना . उधार का लेख है . कहीं हरजाना देना पड़ जाए . तो पढ़िये जीतू जी का लेख:
ब्लॉग रत्न : फुरसतिया महाराज
आज यानि १६ सितम्बर को सर्वप्रिय लेखक और ब्लॉग जगत के बड़े भाईसाहब अनूप कुमार शुक्ला उर्फ़ शुकुल उर्फ़
फुरसतिया का जन्मदिन है, बोले तो हैप्पी बर्थ डे है। फुरसतिया जी अगर चीन मे होते तो शोक मना रहे होते कि एक साल और निकल गया। लेकिन अब चूंकि ये भारत मै पैदा हुए है, इसलिए जन्मदिन की मुबारकबाद तो सबको देनी ही पड़ेंगी। (दोगे नही तो जाओगे कहाँ,
चिट्ठा चर्चा यही लिखते है, और आजकल नारद की अनुपस्थिति मे चिट्ठा चर्चा ही हिन्दी के ताजे चिट्ठों तक पहुँचने का एकमात्र माध्यम है। मैने हिन्दी ब्लॉग लिखने की प्रेरणा इन्ही के चिट्ठे को देखकर ली थी।
पहली टिप्पणी इन्ही के ब्लॉग पर की थी। शुरुवात के दिनो मे फुरसतिया और
ठलुवा (ये भी बहुत भीषण प्राणी है, इनपर फिर कभी) ब्लॉग मे आपसी बातचीत किया करते थे। इधर से ये फायर करते थे, उधर से वो, दोनो का
जवाबी कीर्तन देखने लायक है।
फुरसतिया जी के अनुसार यह कविता एकदम सटीक बैठती है हमने इसे इनके ब्लॉग से ही चांपा है)
हम न हिमालय की ऊंचाई, नहीं मील के हम पत्थर हैं
अपनी छाया के बाढे. हम, जैसे भी हैं हम सुंदर हैं
हम तो एक किनारे भर हैं सागर पास चला आता है.
हम जमीन पर ही रहते हैं अंबर पास चला आता है.
–वीरेन्द्र आस्तिक
अब इन्होने ब्लॉग का नाम फुरसतिया काहे रखा, लो लीजिए इन्ही से सुन लीजिए :
"जब मैनें देखादेखी ब्लाग बनाने की बात सोची तो सवाल उठा नाम का.सोचा फुरसत से तय किया जायेगा.इसी से नाम हुआ फुरसतिया.अब जब नाम हो गया तो पूछा गया भाई फुरसतिया की जगह फोकटिया काहे नही रखा नाम.नाम क्या बतायें?अक्सर ऐसा होता है कि काम करने के बाद बहाना तलाशा जाता है.यहाँ भीयही हुआ.तो बहाना यह है कि ब्लाग फुरसत में तो बनसकता है पर फोकट में नहीं.इसलिये नाम को लेकर हम निशाखातिर हो गये."
फुरसतिया शब्द का अर्थ चाहे जो भी हो, हम तो इसे फुल्ली रसभरी बतिया मानते है। मतलब ये कि फुरसतिया का ब्लॉग पढते समय आप हास्य रस मे सराबोर हो जाते है। शब्दों पर इनकी बहुत अच्छी पकड़ है। विषय वस्तु के बारे मे क्या कहें, हमने इनको लड़कियों से छेड़खानी के ऊपर एक लेख लिखने को कहा तो जनाब प्रेक्टिकल एक्सपीरियन्स लेने (यहाँ इसे ‘छेड़ने‘ पढा जाए) गर्ल्स कालेज के बाहर टहलते मिले। मतलब ये कि बिना अनुभव किए वो लिखते नही और लिखने के लिये अनुभव लेने से भी नही चूकते। अब
गालियों का सांस्कृतिक महत्व वाले लेख को ही लीजिए, बाकी आप स्वयं समझ जाएंगे। वैसे अभी पिछले दिनो इन्होने निरन्तर पत्रिका के एड्स विशेषांक पर भी कुछ लेख भी लिखे थे, (आप गलत सलत मत समझिएगा, हम पहले से ही कह देते है।)
फुरसतिया जी के ऊपर तो वैसे अतुलवा बहुत कुछ
लिख चुका है, हम यहाँ सिर्फ़ अनछुई बाते ही बताएंगे और हाँ चिकाई बिल्कुल नही करेंगे। फुरसतिया जी बचपन से बहुत चिकाईबाज किस्म के इन्सान रहे है। फुरसतिया के बचपन की बात है, कानपुर में ब्रहम नगर के पास, एक छोटा सा मंदिर था मंदिर के बाहर, एक राक्षसी खुला हुआ मुँह वाली मूर्ति बनी हुई थी, इनको पता नही उस राक्षसी मे क्या नजर आया, मंदिर के बाहर खड़े रहकर, घन्टो छोटे छोटे कंकड़ों से राक्षसी के मुँह का निशाना साधा करते थे। वहाँ से इनका प्रस्थान तभी होता था, जब तक कि कोई इनको गरियाता हुआ खदेड़ता नही था।
ब्लॉग के बारे आपने चाहे कितनी परिभाषाएं सुन रखी हो, ब्लॉग की झकास परिभाषा फुरसतिया जी ने इस तरह से दी है:
"ब्लाग क्या है?इसपर विद्घानों में कई मत होंगे.चूंकि हम भी इस पाप में शरीक हैं अत: जरूरी है कि बात साफ कर ली जाये.हंस के संपादकाचार्य राजेन्द्र यादव जीकहते हैं कि ब्लाग लोगों की छपास पीङा की तात्कालिक मुक्ति का समाधान है.खुद लिखो-छाप दो.मतलब आत्मनिर्भरता की तरफ कदम."
अनूप भाई की एक खास बात है, ये किसी को भी पिटता हुआ नही देख सकते। अगर दो लोग मिलकर किसी तीसरे की पिटाई कर रहे हों तो फुरसतियाजी बिना मसला जाने, तुरन्त पाला बदलकर पिटने वाले के घाव सहलाने लगते है। पिछले कई किस्से बयां किए जा सकते है। हमारा बऊवा जो हर बार पिटने वाले काम करता था, फुरसतियाजी उसकी पिटाईपरान्त तत्काल घाव सहलाने के लिए उपलब्ध रहते थे। यहाँ तक तो गनीमत थी, लेकिन एक दिन कल्लू पहलवान ने अपना लट्ठ लहराते हुए फुरसतियाजी से पूछा “बहुत याराना लगता है…. क्यो?” उस दिन के बाद से अनूप भाई बऊवा से ऐसे कन्टी हुए कि बऊवा से सिर्फ़ हमारे ब्लॉग तक की पहचान रखे हैं। एक और बात फुरसतिया जी नेकी करके भूल जाते है, ना जाने कितनी बार बऊवा को पिटने से बचाते बचाते खुद चोटिल हुए। फुरसतिया जी अब ये मत पूछना बऊवा कौन? हम जानते है आप महान आत्मा है जो नेकी कर दरिया मे डाल वाले सिद्दान्त पर विश्वास करते है।
शुकुल भाई चिकाई करने मे बहुत आत्मनिर्भर और स्वावलम्बी है, कभी भी किसी की चिकाई करने मे विदेशी सहायता पर निर्भर नही रहते। अकेले अपने बलबूते पर चिकाई लेते है। सार्वजनिक रुप से भरपूर चिकाई लेते है और व्यक्तिगत रुप से मेल मुलाकात कर आते है। जैसे भारत और पाकिस्तान के हुक्मरान, सार्वजनिक रुप से बयानबाजी (चिकाई) करते है, मिलने पर हैंहैं करते हुए पाए जाते है। अगला बन्दा इनका ब्लॉग (दो तीन बार पढकर) सोचता है कि इसने चिकाईबाजी तो की है, लेकिन कुछ उखाड़ने की सोचे इस बीच शुकुल गूगलटाक पर चहकते हुए, पब्लिक रिलेशन करते हुए नजर आते है।बन्दा अभी कुछ कहे, उससे पहले ही ये कहते है, अरे वो हम सिर्फ़ मौज ले रहे थे। वो लेख तुम्हारे लिए थोड़े ही था, वो तो पब्लिक के लिए था। बन्दा लुटा पिटा, ठगा सा रहा जाता है। इसे बोलते जबरी मारे और रोने भी ना दे।
फुरसतिया जी को समय समय पर साहित्यिक बीमारियां भी होती रहती है, कभी कविता (अरे वो वर्मा जी की लड़की नही, काव्य वाली कविता) का शौंक, कभी हाइकू का हैंगओवर और कभी जीवनियों का जोश। कभी ये जीवित कवियों की जीवनी लिखते है, कभी मरहूम शायर को भी जन्नत मे चैन नही लेने देते। कविताएं भी लिखी है इन्होने, अब समझने वालों से पूछो कि कैसे समझ मे आयी। आखिरी समाचार मिलने तक इस पर अभी शोध जारी है। इनके लेख इतने लम्बे लम्बे होते है कि पढने वाला अगर पूरा पढने बैठे तो अर्सा लग जाए। इसलिए पहला और आखिरी पैराग्राफ पढकर लोग तारीफ़ करके कट लेते है। लेखन मे इन्होने देवी देवताओं को भी नही छोड़ा, कई कई बार वहाँ से कम्पलेन्ट आयी कि भई देखो और समझाओ इसको क्या क्या लिखॆ जा रहा है। अनेको बार तो बवाल बहुत बढ गया लेकिन नारद ने हर बार मान्डवली करायी।
फुरसतिया की लेखन शैली मे शब्दों का अजीब लेकिन परपेक्ट सा घालमेल होता है, साहित्य की गम्भीरता, हास्य की मिठास, कनपुरिया चिकाई की चाश्नी और व्यंग का तीखापन एक साथ एक ही जगह पर देखने को मिलती है। लेखन मे विषय भी इतने धाकड़ होते है कि हम लोग सोचते रह जाते है, ये लिखकर आ भी जाते है। एक बात और, लिखने के तुरन्त बाद, ये गूगल टाक पर शिकार तलाशते नजर आते है, जो पहले पकड़ मे आया, तड़ से उसको बोलते है, पढ। अगर किसी ने झूठ मूठ बोला कि पढ लिया, तो फुरसतिया जी हैडमास्टर की तरह लेख सम्बंधित सवाल पूछने लगते है। और अगर किसी ने दबाव मे आकर बोला, “वाह! वाह! क्या लिखा है।” बस फिर तो फुरसतिया जी गुलाम अली की तरह हारमोनियम उसकी तरफ़ करके, पूरी प्रस्तावना से उपसंहार तक उसको बता देते है। अनलिखे प्वाइन्ट भी बता देते है। उसके बाद बारी होती है, टिप्पणी तकादे की। फुरसतिया तुरन्त उसको बोलते है, टिप्पणी कर। मरता ना क्या करता, अगला तुरन्त टिप्पणी करके पतली गली से सरक लेता है, और अगली बार गूगल टाक पर मिस्टर इन्डिया वाली सैटिंग से ही लागिन करता है या फिर अति व्यस्त लिखकर ही अवतरित होता है।
फुरसतिया जी आसान लेखन मे विश्वास नही करते, इनका मत है:
- पहली बार तो बन्दा लेख देखने आए, (बन्दा लेख लम्बा देखकर पतली गली से निकल जाता है)
- दूसरी बार पढने आए (अगर फुरसतिया गूगल टाक पर दिख गए तो पक्का पकड़कर लाया गया होगा)
- तीसरी बार डिक्शनरी बगल मे दबाकर दोबारा पढने आए। (बशर्ते डिक्शनरी मिल जाए)
- चौथी बार टिप्पणी के लिए (पिछली बार गूगल टाक पर गोली देकर निकले बन्दो के लिए) आए।
इसके अलावा अनूप भाई युवा चिट्ठाकारों को बहुत प्रोत्साहन देते है, ये प्रोत्साहन उस वक्त दोगुना चौगुना हो जाता है यदि वो चिट्ठाकार कोई महिला चिट्ठाकार हो। उनको सहायता देने मे फुरसतिया जी की ऊर्जा देखते ही बनती है। हम तो सिर्फ़ एक इमेल की दूरी पर रहते है लेकिन फुरसतिया, वो तो यह दूरी भी मिटाकर मोबाइल नम्बर तक दे देते है।हम लोगों ने भी कई बार चिकाई चिकाई मे महिला चिट्ठाकार वाला खेल इनके साथ खेला है, सचमुच मे अनूप भाई बहुत अपनापन दिखाते है….बाकी हम कैसे लिखे यहाँ पर।
अनूप भाई को एक बहुत बड़ी चिन्ता रहती है अपने ब्लॉग पर हिट संख्या की। विश्वस्त सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि इन्होने अपने ब्लॉग पर एक नही दो नही, तीन तीन हिट काउन्टर लगा रखे है। ज्यादा कुरदने पर पता चला कि यदि एक हिट काउन्टर इनके मन मुताबिक विजिटर संख्या नही दिखाता तो ये दूसरे वाले को देखते है। अगर दोनो कम दिखाते है तो इसको बदलने की सोचने लगते है।जैसे लोग अखबार मे राशिफल पढते समय पहले जन्मतिथि अनुसार राशिफल पढते है, कुछ गलत सलत होता है तो नाम के पहले अक्षर वाला राशिफल पढते है, ठीक वैसा ही।
इन सबके बावजूद भी फुरसतिया जी का ब्लॉग मेरा मनपसन्द ब्लॉग है। सुबह जब मै लागिन करता हूँ तो पहला काम इनका ब्लॉग देखने जरुर जाता हूँ, जैसे गुरद्वारे मत्था टेकने जाते है लोग बाग। सचमुच फुरसतिया का लेखन बहुत कमाल का है, यदि कोई सीखना चाहे तो फुरसतिया का ब्लॉग अपने आप मे एक इन्स्टीट्यूशन है। हास्य व्यंग का पुट, समसामयिक आलोचना, ज्वलन्त मुद्दे, सामाजिक कुरीतिया सभी पर इन्होने बहुत ही अच्छे तरीके से लिखा है। हिन्दी के इस ब्लॉग रत्न को मेरी तरफ़ जन्मदिन की बहुत बहुत बधाइयां। आशा है वे इस तारीफ को पाकर फ़ूलेंगे नही, और अपना लेखन लगातार जारी रखेंगे। इन्ही शुभकामनाओं के साथ…..( और चिकाई के जवाबी फायर की उम्मीद में)उनका अनुज, शिष्य और ब्लोंगोटिया यार (ये लंगोटिया टाइप का होता है)
-जीतू
चलते-चलते
फुरसतिया जी हो गए, छियालीस के आज .
ब्लॉग नीरनिधि मौज के बादशाह बेताज ..
बादशाह बेताज, मुबारक होय जनमदिन .
यूँ ही लेते रहें मौज ये सबसे प्रतिदिन ..
विवेक सिंह यों कहें, हमारी इन्हें दुआएं .
देने वाले मौज, स्वयं आकर दे जाएं ..
जितेन्द्र चौधरी: विवेक भाई,
लेख छापने का धन्यवाद।
इतने साल हो गए ये लेख लिखे, शुकुल(फुरसतिया) ना बदला, ना ही बदलेगा।
आज जब शुकुल 46 साल के माशाअल्लाह जवां मर्द हो गए है, उनको उनके जन्मदिन पर ढेर सारी बधाईयां। शुकुल तुम जियो हजारों साल, लिखो लेख पचास हजार।
एक बार फिर से धन्यवाद और शुकुल को बधाई।