शनिवार, मई 04, 2013

दैवीय आपदा.......


देवताओं के दाढ़ी और मूँछें नहीं होती थीं ।

वे हमसे ताकतवर थे ।

उनको युद्ध में हराना मुश्किल था लेकिन असंभव नहीं । रावण के डर से वे थरथर काँपते थे ।
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उनके असुरों के साथ युद्ध होते रहते थे ।

हमारे ऊपर उनकी कृपा बनी रहती थी क्योंकि हम देवताओं और असुरों के बीच बफर स्टेट थे ।

देवता लोग हमें उल्लू बनाते रहते थे कि हमारे यहाँ वर्षा वे ही कराते हैं और उनकी ही आज्ञा से हमारे यहाँ धूप निकलती है आदि । यहाँ तक कि उन्होंने अपने नाम भी सूर्य, चंद्रमाँ आदि रख लिए थे ।

अपने प्रभावशाली लोगों को वे भगवान बताते थे । हमारे यहाँ कोई प्रभावशाली व्यक्ति पैदा होने पर वे उसे उन्हीं का अवतार बताकर उसे अपने में शामिल कर लेते थे ।

उनके कुछ नेता जैसे कि विष्णु जी, सांप्रदायिक टाइप के थे जबकि शिव जी जैसे नेता सेक्युलर थे ।

हम देवता और असुर किसी के सामने नहीं ठहरते थे इसलिए असुरों के डर से देवताओं की चापलूसी करते रहते थे । किन्तु हमारे कुछ राजाओं ने इतनी ताकत प्राप्त कर ली कि वे युद्ध में देवताओं की सहायता कर सके ।

देवताओं के पास अच्छे हथियार थे ।

वे स्वर्ग में रहते थे ।

स्वर्ग बहुत ऊँचाई पर था ।

स्वर्ग पहुँचना लगभग असंभव था । इस प्रयास में अक्सर लोग जान गवां बैठते थे, इसलिए यह आम धारणा बन गई थी कि स्वर्ग मरकर ही जाया जा सकता है । लेकिन देवता जिसे चाहें सशरीर स्वर्ग में बुला सकते थे ।

अर्जुन हथियार लेने स्वर्ग गए थे जबकि त्रिशंकु को जबरदस्ती स्वर्ग में पहुँचने पर धक्के मार कर बाहर निकाल दिया गया था । वे बेचारे शर्म के मारे वापस ही नहीं लौटे ।

स्वर्ग हिमालय के उस पार था । युधिष्ठिर हिमालय पार करके स्वर्ग पहुँच गए थे ।

हमारे यहाँ किसी राजा को घमण्ड होने पर उसको औकात याद दिलाना देवताओं को अच्छी तरह आता था ।

जब असुरों की ताकत कम हो गई तो उन्होंने हमारे साथ मेलजोल बढ़ाया । यह हमारे राजाओं को भी ठीक लगा क्योंकि हम भौगोलिक रूप से देवताओं से अधिक असुरों के सम्पर्क में आते थे ।

देवताओं से अच्छे संबंध गुजरे जमाने की बात हो गई लेकिन वे हमें औकात याद दिलाना नहीं भूले । किसी न किसी बहाने बता ही देते हैं कि, “ज्यादा उछलो मत !”

अबकी बार टैण्ट गाड़ दिए......................

मित्रगण