बुधवार, जुलाई 15, 2009

गुरु जी के लक्ष्य वेधन

आज गगन शर्मा जी की पोस्ट पढ़ी । कहते हैं कि गुरु, गुरु ही होता है । हम अतिविनम्रतापूर्वक कहना चाहते हैं कि हम यह नहीं मानते कि गुरु, गुरु ही होता है । गुरु और भी बहुत कुछ होता है । अब हमारे गुरु जी को ही ले लीजिए । अभी कल ही उनकी पोस्ट पढ़ी : घुन्नन-मिलन । पढ़ी तो आपने भी होगी, किसी कारणवश न पढ़ सके हों तो जाकर पढ़ लें ।
जिन्होंने पढ़ी उन्होंने अपने-अपने अर्थ निकाले होंगे । पर चूँकि हम तो उनके चेले ठहरे इसलिए उनकी हर पोस्ट का विस्तृत अध्ययन करके उसके निहितार्थ को हृदयंगम करना हमारा होमवर्क रहता है । हमने कल वाली पोस्ट में काफ़ी सिर खपाया लेकिन कोई निश्चित सूत्र हाथ न लग सका । थक हारकर गुरु जी को फोन लगाया लेकिन बीएसएनएल( भाई साहब नहीं लगेगा ) है ना इसलिए नहीं लगा । इसी चिन्ता में हम सो गए ।

अचानक रात को गुरु जी का फ़ोन आया । लगभग हड़काते हुए बोले,"होमवर्क हो गया ?" शायद उनको पहले ही हमारी योग्यता पर भरोसा था कि यह लल्लू न समझ पायेगा । मैंने कहा," गुरु जी होमवर्क तो नहीं हुआ । आपने इतनी भारी पोस्ट डाल दी । मैंने फोन भी लगाया पर नहीं लगा । बोले ," बातें मत बना । और ध्यान से सुन ।" मैं ध्यान लगाकर सुनने लगा ।

गुरु बोले," तुझे याद होगा । बालसुब्रमण्यम जी ने हम पर उत्तर फेंका था । और हम उस उत्तर का प्रश्न ढूँढ़ने का बहाना बनाकर वहाँ से चले आये थे । उधर पता चला कि घुन्नन ने भैया को तंग किया है । और घुन्नन का सहारा लेकर कुछ लोग भैया से मौज ले रहे थे । जिनमें तुम भी शामिल थे । अब हमें कई लक्ष्यों का वेधन एक साथ करना था । हम सब पर अलग पोस्ट लिखना अफ़र्ड नहीं कर सकते थे ना ।"

"पर गुरु जी इस पोस्ट से क्या संदेश गया ?" मैंने अज्ञानतावश पूछ लिया ।" गुरु जी के होठों पर गुराहट फ़ैल गई । मुस्कराकर बोले," तू नहीं समझेगा । इस पोस्ट से हमने क्या क्या लक्ष्य वेध दिये हैं । सुन ,

" पहला तो हमने बालसुब्रमण्यम जी को जाहिर कर दिया कि हम भली भाँति जानते हैं साहित्य क्या होता है और ब्लॉग क्या होता है । इसका बोनस हमें यह भी मिला कि हमारा नाम अब साहित्यकारों की श्रेणी में आ गया । बोले तो परसाई, अज्ञेय, गालिब और दिनकर के साथ हमारा नाम लिखा जाएगा । आखिर हमने भी साहित्य लिखा है ।

दूसरा लक्ष्य वेधन यह हुआ कि तुम जैसे मौज लेने वालों को संदेश दिया । कि भैया ने सच बोला है कोई चोरी नहीं की । फ़िर उनसे मौज क्यों ली गयी ।

तीसरा लक्ष्य वेधन यह हुआ कि भैया को हमने बता दिया कि उनकी पोस्ट ब्लॉग है और हमारी साहित्य । इस प्रकार वे ब्लॉगर ही रह गए और हम साहित्यकार हो गए हैं । अब हमें कब तक 'छोटे' कहकर बुलाएंगे ।

चौथा लक्ष्य वेधन यह हुआ कि घुन्नन को हमने बता दिया कि वे हमारे पास आते तो हम क्या करते । इससे यह फ़ायदा और मिला कि हल्दी लगी न फ़िटकरी और रंग आ गया चोखा । लक्ष्य तो इस लेख से और भी बहुत सारे वेध दिए हैं हमने पर वे सब तुम्हारे सिलेबस से बाहर हैं । इतना कहकर गुरु जी की आवाज आनी बन्द हो गयी । मैं हेलो हेलो कहता जा रहा था ।

मेरी हेलो हेलो की आवाज सुनकर श्रीमती जी समझ गयीं कि हम अवश्य ही सपने में फोन पर बात कर रहे हैं । और उन्होंने हमें जगा दिया । अन्यथा हमें गुरु जी से कुछ और ज्ञान मिल गया होता ।

25 टिप्‍पणियां:

  1. गुरुजी का संदेश तो पल्ले पड गया और आपकी इस पोस्ट से आपका संदेश भी मिल गया:)

    रामराम.

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  2. लक्ष-वेधन का मतलब किसी और से समझते हो और गुरु मुझे कहते हो?...:-)

    बहुत मज़ा आया पढ़कर.

    बवाल जी ने मंगलवार की चर्चा पर किये गए अपने कमेन्ट में पहले ही तुम्हें साहित्यकार बता दिया था. साहित्यकार के पास सुविधा है कि वो कुछ भी लिखकर उसे सपना बता डाले. तुम्हारी यह पोस्ट बिकट साहित्यिक पोस्ट है.

    मैं खुद भी घुन्नन से नहीं मिला लेकिन 'साहित्यिक' पोस्ट ठेल दिया.

    कल के रिकार्ड्स देखें तो पता चलेगा कि ब्लॉग जगत में दो साहित्यकारों ने झकास एंट्री मारी है. तुम हो, इसका पता तो कल की चर्चा में चला. कल वाली पोस्ट के बाद हम खुद भी साहित्यकार हो लिए. अंतर केवल एक ही है. तुम साहित्यकार हो, यह बात एक्सपर्ट लोगों ने कही. इसलिए तुम नामधन्य साहित्यकार हुए. वहीँ हमने खुद को साहित्यकार घोषित कर दिया, इसलिए हम स्वनामधन्य साहित्यकार हुए....:-)

    नोट: इस समय में ब्लॉगर के रूप में नहीं बल्कि एक साहित्यकार के रूप में टिपिया रहा हूँ.

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  3. "गुरु जी के होठों पर गुराहट फ़ैल गई । मुस्कराकर बोले," ससुरा टेलेफोन न हुआ ३ जीपी हो गया.! मजा आ गया.

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  4. वाह! वाह! यहां ब्लॉगर भी हैं, साहित्यकार भी हैं! बोले तो बड़े ब्लात्यकार हैं!

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  5. एकाएक दो दो साहित्यकार-कैसे सह पाऊँगा. मुझे तो इतने सालों से एकाकीपन भाने लगा था. आदत सी पड़ गई थी अकेले रहने की कि एकाएक जमात में दो और. ओह!! नो..काश, सपना हो यह. कोई इन्हें जगा दो!

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  6. आप के स्वप्न भी साहित्यिक होते जा रहे हैं.

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  7. वाह वाह विवेक भाई आपके स्वपन तो बहुत बडिया रण्ग दिखाने लगे हैं अपके साहित्यकार होने पर बधाई

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  8. ब्लात्यकार?
    यह तो हिन्दी के साथ बलात्कार हो गया।

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  9. सही है जी, सपनों की उपज है ये पोस्‍ट:)

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  10. जब गुरू जी लोग रात-रात में फ़ोन करके होमवर्क करायेंगे तब शिक्षा का स्तर कहां जाकर ठहरेगा। :)

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  11. साहित्यकार होने पर आपका नाम साहित्यकारों के नाम के साथ क्यों बल्कि आपका नाम क्यों न स्वर्ण अक्षरो में लिखवा दिया जायेगा हा हा आप भी मित्र . पोस्ट पढ़कर आनंद आ गया . धन्यवाद.

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  12. Bahoot khatarnaak swapn dekhne lage hain aajkal aap....... chalo saahitykaar ki shreni mein to aa gaye.......

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  13. Sapne tutate hain to kabhi-kabhi jud bhi jate hain...prayas karke dekhen...behatrin post !!

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  14. और अंतिम लक्ष्य बेदन यह हुआ कि बी एस एन एल को नई परिभाषा मिल गई। ब्लाइत्यकारों की जय हो:-)

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  15. अभी तक ब्लागजगत में जो समझ आयी है मुझे महज दो लोग मौजिया चिट्ठाकारी कर रहे हैं पहले तो अनूप शुक्ल जी अब दूसरे विवेक जी -ये दूसरों की मौज लेने में निष्णात हैं ! ये मौज लेगे ही जबरिया भी !

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  16. हा हा!

    शेफाली जी की बात से सहमति

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  17. साहित्यकार बनने के लिये बेकार इतनी मेहनत की।यंहा छत्तीसगढ मे तो कई लोगो ने दुकान सारी बलागर की भाषा मे कह गया कारखाने खोल रखे हैं साहित्यकार गढने के लिये।इन लोगो का जुगाड़ (पुनश्चः क्षमा प्रार्थी हूं ब्लागरिय भाषा का कीड़ा लगातार काट रहा है)नही नही इनके पाठ्यक्रम मे पीएचडी तक कराने की गारंटी है।

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  18. बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  19. स्वप्नसाहित्य ! रोचक अति रोचक !

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  20. गुरु पोस्ट तो धाँसू है
    फुर्सत में लिखी लगती है
    वे ब्लॉगर ही रह गए और हम साहित्यकार हो गए हैं ।
    वाक्य में दम है

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