शनिवार, सितंबर 05, 2009

अब क्या खाओगे......?

आश्विन मास के साथ ही शरद ऋतु का तोहफा भी आ पहुँचा है । चहुँ ओर धुला धुला सा वातावरण है । हरियाली के बीच फूल ऐसे ही सुशोभित हो रहे हैं जैसे सुंदरियों के होठों पर लिपिस्टिक । सुबह और शाम सुहाने हो गए हैं । शाम को बाहर घूमने निकलें तो हवा की ताजगी देखकर लगता है जैसे जीवन में पहली बार आज ही साँस ली हो । गरमी में तो हालत यह होती है कि घर से बाहर निकलो तो गरम हवा के थपेड़े अपमानित करने के लिए हर समय तैयार मिलते हैं । निकलते ही एक कान के नीचे खैंच के पड़ता है फिर जैसा आपका साहस वैसी सेवा । गरमी का मौसम एक जाट की दुकान की तरह है । अपना सीधे सीधे सामान खरीदकर लाना है तो ठीक अन्यथा जरा सी चूँ चपड़ करते ही अगली दुकान की ओर इशारा कर देगा । उसे यह तो बाद में महसूस होगा कि बेकार ही एक ग्राहक को नाराज कर दिया । लेकिन शरद ऋतु में आपके साथ ऐसा नहीं होगा । अब आप बनिये की दुकान पर आ गये हैं । यहाँ का मूल मत्र है 'बनिये' 'बिगड़िये मत' । ' जी सर' , 'यस सर' जैसे शब्दों से आपकी सेवा होगी ।

श्राद्ध पक्ष की धूम है । ब्राह्मणों की चाँदी है । दावतें उड़ाने का मौसम है । इन दावतों के चक्कर में इतिहास में बहुत लोगों को को उल्लू बनाया गया है । गरीबों की गरीबी से भी रस चूसा गया है । पितरों को भोजन पहुँचाने के नाम पर भूखे बच्चों के मुंह का निवाला छीनकर खाया गया है । और यह सब अब भी हो रहा है । धर्म, जो निहायत ही व्यक्तिगत होना चाहिये, समाज का पर्याय बना दिया गया है । समाज में रहना है तो स्वयं भूखे रहो पर पितरों के नाम पर दावतें खिलाओ । समाज में रहना है तो बच्चों को भूखे रखो पर अन्त्येष्टि की दावत खिलाओ । शायद किसी गरीब की अन्तरात्मा ने ही मजबूर होकर कहा होगा :

आये कनागत फूले काँस पण्डित कूदे नौ-नौ बाँस ।

गये कनागत फूले झुण्ड, अब क्या खाओगे ......... ?

आज शिक्षक-दिवस पर यह उनके लिए कहना पड़ा जिन्हें समाज ने सदियों से अपना शिक्षक माना । शिक्षक जब अपनी जिम्मेदारी भूलकर स्वार्थरत हो जाएं तो ट्यूशन और पेपर आउट करने जैसी स्थितियाँ जन्म लेती हैं । और छात्रों का बेड़ा गर्क होता जाता है । भगवान शिक्षकों को शिक्षक बनाए रखें ।

19 टिप्‍पणियां:

  1. क्या रिक्त स्थान की पूर्ति के लिये कार्यक्रम का आयोजन किया है। वैसे गरीब की हाय बड़ी मार्मिक है।

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  2. एक शानदार खबर आप लोगो के लिए पुरानी है पर आप लोगो ने सुनी नही होगी
    यू-ट्यूब की यह लिंक देखें और अपना कीमती (और असली) खून जलायें… सेकुलर UPA sarkar के सौजन्य से… :)

    http://www.youtube.com/watch?v=NK6xwFRQ7BQ

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  3. सही कहे हो. मेरा मानना है कि........................

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  4. मै भी यही कहूँगी कि भगवान शिक्षक को शिक्षक ही बनाये रखे .....

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  5. विवेक जी, जब बात जाट की कर ही दी तो भला मैं कहाँ चुप बैठने वाला था. वैसे जाट दुकानदारी कम ही करते हैं क्योंकि आपके कहे अनुसार उनके यहाँ ग्राहक टिकते नहीं और दुकान भी चलती नहीं.
    सौ आने सही.

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  6. बडिया विवेक भाई लगे रहिये समाज कभी तो सुधरेगा शुभकामनाये

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  7. हे राम एक ब्लांग ओर कितनी मुस्किले.... लेकिन आप ने गागर मै सागर भर दिया, बहुत अच्छा लगा.
    धन्यवाद

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  8. शिक्षकों को भगवान ही शिक्षक क्युं बनाए?

    रामराम.

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  9. " अब आप बनिये की दुकान पर आ गये हैं । यहाँ का मूल मत्र है 'बनिये' 'बिगड़िये मत'..."

    जी हां, बनिये मत, ओरिजिनल दिखिये, पैंट-शर्ट में आइये और चड्डी-बनियान में जाइये:)

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  10. "गरमी का मौसम एक जाट की दुकान की तरह है ।"

    कितना शानदार रूपक है ।
    आपकी इस प्रार्थना में सम्मिलित हूँ - "भगवान शिक्षकों को शिक्षक बनाए रखें ।"

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  11. समाज में रहना है तो स्वयं भूखे रहो पर पितरों के नाम पर दावतें खिलाओ । समाज में रहना है तो बच्चों को भूखे रखो पर अन्त्येष्टि की दावत खिलाओ ।
    कुरीतियों पर करारी चोट |

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  12. इस बारे में मेरा ये सोचना है कि..................

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  13. कनागत के नाम पर लूट तो इस देश में सदियों से चली आ रही है. कनागत ही क्या, कोई अवसर, कोई पर्व, कोई विभाग, इससे बचा नहीं है. आपने अपनी पैनी निगाह हर तरफ डाली है. इस शानदार लेख पर बधाई.

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  14. समाज में रहना है तो बच्चों को भूखे रखो पर अन्त्येष्टि की दावत खिलाओ -दुखद और अफसोसजनक है.


    -शिक्षक दिवस पर समस्त शिक्षकों का नमन!!

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  15. शिक्षा की दुकान सबसे ज्यादा चल रही है,पंडितो से भी ज्यादा ग्राहक हो गये हैं इनके,मज़ेदार बात तो ये है कि ये एक ही सामान को दो बार बेचते है और दो बार कीमत वसूलते हैं,एक बार स्कूल मे और एक बार घर मे।

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