सोमवार, अप्रैल 05, 2010

जयति जय पब्लिसिटी माता

जयति जय पब्लिसिटी माता
अपनी बैंक खुला दो मैया, मेरा भी खाता

ऐरे गैरे तुम्हें पा गये
फ़र्श छोड़ अर्श पै छा गये
बन्धु बान्धवी सब भुला गए
तोड़ दिया नाता
जयति जय पब्लिसिटी माता

काम न जो बनता प्रयास से
असफलता जाती न पास से
किन्तु तुम्हारी एक साँस से
गूँगा भी गाता
जयति जय पब्लिसिटी माता

मैया यूँ अन्याय न करिये
अब आरक्षण लागू करिये
अनपब्लिश के ऊपर धरिये
पब्लिश का छाता
जयति जय पब्लिसिटी माता

मैंने होश सँभाला जबसे
दर्शन को लालायित तब से
राह आपकी देखूँ कब से
और न कुछ भाता
जयति जय पब्लिसिटी माता

तुम सौ ऐबों को भी देती
तुम हो बिना खाद की खेती
किन्तु न कभी कान में लेती 

याचक की बाता ?
जयति जय पब्लिसिटी माता

अपनी बैंक खुला दो मैया, मेरा भी खाता
जयति जय पब्लिसिटी माता


4 टिप्‍पणियां:

  1. ऐसे-वैसों को दिया है। कैसे-कैसों को दिया है। उनसे तो अच्छा ही हूं। अब तो दया दृष्टि ड़ालो माता।
    सुनवाई हो तो बताईयेगा। :)

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  2. हम भी आरती नोट कर लिये हैं और रोज ही ई जो है भगवन के सामने की जाएगी। जय माता की ।

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  3. "सौ ऐबों... " सही है जी..
    हम भी सोच रहे है.. सुबह शाम ये चालु कर दे..

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  4. नमस्कार विवेक भाई,
    आपके इस आरती को मूर्खिस्तान ने अपने देश में प्रकाशित कर आपको थोड़ी पब्लिसिटी दिलाने की कोशिश की है.

    माधो दूरदर्शी.
    www.moorkhistan.com

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