धूप-छावँ का नाम सितम्बर
कोई उजली शाम सितम्बर
वसुधा तृप्त हुई जल पीकर
हरियारी फैली धरती पर
धरती का गुलफ़ाम सितम्बर
कोई उजली शाम सितम्बर
वर्षा सारा जहाँ धो गई
लेकिन अब कुछ मंद हो गई
इसका अल्प विराम सितम्बर
कोई उजली शाम सितम्बर
बादल थककर वापस जाते
बचाकुचा पानी बरसाते
देता कुछ आराम सितम्बर
कोई उजली शाम सितम्बर
लगती ताजा हवा भली सी
धूप कुरकुरी तली तली सी
तलता है बेदाम सितम्बर
कोई उजली शाम सितम्बर
खेतों में झूमते धान हैं
इन पर लट्टू सब किसान हैं
खुशियों का पैगाम सितम्बर
कोई उजली शाम सितम्बर
वर्ष यहाँ से ढलान पर है
नदियाँ कुछ कम उफान पर हैं
नदी किनारे ग्राम सितम्बर
कोई उजली शाम सितम्बर
देख शरद ऋतु खड़ी द्वार पर
मस्ती सी छायी बयार पर
मेरा तुझे प्रणाम सितम्बर
कोई उजली शाम सितम्बर
धूप-छावँ का नाम सितम्बर
कोई उजली शाम सितम्बर
badhiya laga ye kaam sikander... :)
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी ताजी रचना है.भाषा सरल है.बधाई
जवाब देंहटाएंBahut sundar,pyaree rachana!
जवाब देंहटाएंमाहों की स्तुति, रोचक है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर महीने के अंदाज़
जवाब देंहटाएंहाय! सितम्बर न हुआ सितमगर हो गया :)
जवाब देंहटाएंइक ब्लॉगर का आगाज सितम्बर !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंबहुत खूब!
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