रविवार, अक्तूबर 25, 2009

अब साधू होने का मन है

हमको नाहक ही बुलवाया
इंतजाम यह रास न आया

दोहरी सभी व्यवस्थाएं थीं
पैसा जाने कहाँ बहाया

उनको दूध-जलेबी हाज़िर
हमें बेड-टी को तरसाया

कैसी कैसी उम्मीदें थीं
उन पर पानी खूब फिराया

वे ठहरे एसी कमरों में
हमें मच्छरों से कटवाया

सीखे-पढ़े सभी मच्छर थे
सारी रात खूब तड़पाया

जिनके पास न डिग्री कोई
संचालक उनको बनवाया

ज्ञान हमारा जगजाहिर है
आम जनों में खुद को पाया

बैठे आप घरों में अपने
आप नहीं समझोगे भाया

जिसके पैर न फटी बिवाई
दर्द पराया समझ न पाया

और भला अब क्या बतलाएं
कहते कहते दिल भर आया

अब साधू होने का मन है
यह ब्लॉगिंग तो है बस माया

इलाहाबाद में चिट्ठाकारों का सम्मेलन हो गया । कुछ लोगों को बुलाया गया कुछ को नहीं बुलाया गया । हम उनमें से हैं जिन्हें नहीं बुलाया गया । अपना दर्द किससे कहें ? ऊपर से जिन्हें बुलाया गया उनमें से एक सज्जन हमसे मौज ले लिये । टिप्पू चाचा की अदालत में अरविंद मिश्र कहते हैं :

"हाँ विवेक की परिकल्पनात्मक टिप्पणी सही है वे आये होते तो उनको भी भाव दिया जाता -खेमा उन्ही का हावी था !क्या करियेगा हिन्दी बेल्ट अपनी इन कमजोरियों से उठ ही नहीं पा रहा !"

यह तो सरासर जले पर नमक छिड़का जा रहा है । हमारा खेमा होता तो हमें बुलावा भी न मिलता ?

26 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब. है भरी जवानी में "माया" समझ में आ गयी. इसे समझने में बरसों की मेहनत लगती है

    जवाब देंहटाएं
  2. छूटेगी यह ब्लोगिंग कैसे
    माया ने है भरमाया

    जवाब देंहटाएं
  3. "....दुनिया में कितना गम है मेरा गम कितना कम है...:)..."

    जवाब देंहटाएं
  4. बुलावा तो आपको मिला था विवेक मगर आप कोई
    इम्तहान वगैरा दे रहे थे न ? सो नहीं आये और अब इसका भी लाभ ले
    ले रहे हैं ! बिग ब्रदर इस वाचिंग यू !

    जवाब देंहटाएं
  5. हमको भी आयोजको से न्यौता नही मिला मगर अनूप जी ने ज़रूर फ़ोन पर निमंत्रण दिया था।जाने की इच्छा हमारी भी बहुत थी मगर जा न सके।खैर जंहा चार बरतन होंगे वंहा खडखडाहट भी होगी ही।वैसे एक राष्ट्रीय संगोष्ठी यंहा भी हो चुकी है और अपने घर के गंदे कपड़े बाहर क्यों धोयें सोच कर उसका हाल बयां नही लिया गया।इन सबके बावज़ूद एक मीट कराने की महेन्द्र मिश्र जबलपुर वाले और एक हम भी सोच रहे हैं।ये सब तो चलता आया हओ और चलता रहेगा,फ़िर बिना गिरे तो सायकिल चलाना नही सीख सकते तो फ़िर ये तो राष्ट्रीय सम्मेलन है।

    जवाब देंहटाएं
  6. ब्लॉगिंग तो करना ही है भैया
    जब तक जीवित है यह काया

    जवाब देंहटाएं
  7. अब साधू होने का मन है.......... arey bhai.... ab aisa mat boilye.....

    जवाब देंहटाएं
  8. विवेक भाई,

    मेरी जान-पहचान का खेमा पहलवान इन दिनों खाली बैठा है...कहो तो आपके पास भेजूं...अगर कोई आपको निमंत्रण भेजे तो ठीक...नहीं भेजे तो खेमा पहलवान है न...अपने आप जाकर खबर ले लेगा...

    जय हिंद...

    जवाब देंहटाएं
  9. कमाल है! हमें तो यही समझ नहीं आ रहा है कि ससुरा ये कैसा ब्लागर सम्मेलन था...जिसमें सम्मिलित होने वाला भी दुखी ओर जो सम्मिलित नहीं हो पाए या नहीं किए गए..वो भी दुखी !!

    जवाब देंहटाएं
  10. जो जाये वो पश्चताये जो ना जाये वो भी पश्चताये... राम राम राम,

    जवाब देंहटाएं
  11. achchhi vyangya kavita likhi... saari alochak poston pe bhaari dikh rahi hai... badhai.

    जवाब देंहटाएं
  12. जिनके पास न डिग्री कोई
    संचालक उनको बनवाया


    --ये कौन है? जरा स्पष्ट करो भाई.

    जवाब देंहटाएं
  13. जरूर बुलाना चाहिये था। वरिष्ठता का ख्याल रखना चाहिये था।

    जवाब देंहटाएं
  14. बढ़िया है जो निमंत्रण नहीं आया वरना ये कविता वाली पूरी बाते झेलने पड़ जाती |

    जवाब देंहटाएं
  15. ओहो ये अरविन्द जी ने तो सब बातें खोल दी, देखिये विवेक सिंह जी ये क्या बोल रहे हैं, लगता है इनको डोज की जरुरत है अपने खेमे के साथ इनकी खबर लीजिये :)

    जवाब देंहटाएं
  16. ब्लागिंग का नशा जिस पर छाया
    वही है यहां भरमाया
    यह तो बाद में मालूम होगा जनाब
    आपने यहां क्या खोया-क्या पाया
    भगवान हमको लेखन के जहांन में लाया
    इसलिए हमने भी है कुछ फरमाया
    विवेक जी आपने कविता के माध्यम से अच्छा पोस्ट मार्टम किया है ब्लागर संगोष्ठी का

    जवाब देंहटाएं
  17. सीखे-पढ़े सभी मच्छर थे
    सारी रात खूब तड़पाया


    मतलब- ट्रेन्ड थे सब!?

    बी एस पाबला

    जवाब देंहटाएं
  18. ज्ञानीजी को नही बुलाया इसीलिये तो ये सब झंझट खडा हो गया. आगे से ध्यान रखा जाना चाहिये.

    और महेंद्र मिश्र जी और अनिल पूसदकर जी को अभी से चेताये दे रहे हैं कि भेडाघाट मे सम्मेलन करवायें तो ज्ञानी जी को बुलाना ना भूलें बाकी सब चल जायेगा.:)

    रामराम.

    जवाब देंहटाएं
  19. अब साधू होने का मन है

    सत्य वचन...:))

    नीरज

    जवाब देंहटाएं
  20. ये तो टंकेषणा के लक्षण हैं , जो कि चिट्ठापुर के गणमान्य वासियों में बेतहाशा पाई जाती है ।

    इहां एक जन को खुदा दिखा नहीं कि सबको दिखने लगता है ।

    जवाब देंहटाएं
  21. "और भला अब क्या बतलाएं
    कहते कहते दिल भर आया"


    सारा ब्लाग जगत रो रहा है कि उन्हें क्यों नहीं बुलाया / कुछ ही लोगों ने सरकारी संस्था को भरमाया :)

    जवाब देंहटाएं
  22. कुपथ पथ रथ दौडानेवाले ... हिंदी ब्लॉग्गिंग के पथ निर्देशक बन रहे हैं ... | इन सम्मेलनों से ब्लॉग्गिंग का भला होने से रहा ...

    जवाब देंहटाएं
  23. are aisa naa kariye..
    aap sadhu ho jaayenge to aapke blog per aane walon ka kya hoga..
    unhone nahi bulaya to kya.. aap apna khud ka sammelan kar sakte hai na.. :D

    जवाब देंहटाएं
  24. aapake blog par pahalee var hee aae pad kar hansee ruk nahee paa rahee thee.Itanee pyaree lapet kar likhee rachana pad mazaa aaya aur kya kya chal raha hai duniya me pata bhee chala .kul mila kar swapnlok kee yatra acchee rahee .acchee rachana kee badhai .

    जवाब देंहटाएं

मित्रगण