रविवार, जुलाई 10, 2011

आया, मानसून आया

आज काफी दिनों के बाद ब्लाग पर आने का समय मिला है । असल में पड़ौस के बच्चों को स्कूल के लिए मौसम पर कविता लिखकर ले जानी थी । उनकी डिमाण्ड पर एक कविता लिखी तो सोचा इसे क्यों न ब्लॉग पर भी डाल दिया जाय जिससे इसका सूखा भी समाप्त हो सके । एक बार गरमी से परेशान होकर एक कविता लिखी थी "गर्मी की सरकार निरंकुश" । आज उसी श्रृंखला में यह कविता भी है ।

गर्मी की सरकार गिराने,
आया, मानसून आया ।
पड़े धूप के तेवर ढीले,
हुई बादलों की छाया ॥


भर उमंग में लगीं फुदकने,
चिड़ियाँ सब डाली-डाली ।
मधुर स्वरों में लगी बोलने,
कुहू-कुहू कोयल काली ॥


देख धरा पर चहल-पहल,
बूँदों का भी जी ललचाया ।
टप-टप गिरने लगीं भूमि पर,
मोर-नृत्य उनको भाया ॥


बारिश के देवता इंद्र ने,
इंद्रधनुष जब तान लिया ।
सूर्यदेव भी सहम गए,
चुप, पश्चिम को प्रस्थान किया ॥


धरती पर उत्साह, बाग में
फूल और हरियाली ।
सब कीचड़ बह गया,
साफ हो गयीं गावँ की नाली ॥

6 टिप्‍पणियां:

  1. आवागमन मौसमों जैसा
    क्यों ब्लॉगर का होता?
    कवि विवेक क्यों बने आलसी
    स्वप्नलोक क्यों सोता?

    बना रहे उत्साह सतत
    कुछ ऐसी रीत चलाओ
    इंद्रदेव कुछ ऐसा कर दो
    ब्लॉगपोस्ट बरसाओ

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  2. बारिश और बच्चे महान हैं जो विवेक सिंह से कविता लिखवा लिये। :)

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  3. सावन का महीना पवन करे सोर....
    चलो, पवन का एक झोंका तो आया.... आया है तो चलता रहे:)

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  4. पर उमस रह रह कर अपना अधिकार जता देती है।

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  5. lagta hai sher ki nind abhi khuli nahi thi ke bachhon ne shor-sharabe kar.....jaga diye....
    bhai jamhayee le rahe the.....itte me kavitayee
    phoot pari.............blog balak ke liye to...
    bamchak kavita hai ji..........


    sadar.

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  6. विवेक भाई

    बहुत ही सुद्नर कविता .. प्राकृतिक सुंदरता को आपने बहुत अच्छी तरह से अपनी कविता में ढाला है . दिल से बधाई

    आभार
    विजय

    कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html

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